: २२ : आत्मधर्म : मागशर : २५०१
सर्वज्ञ महावीरनो ईष्टउपदेश
भगवान सर्वज्ञे जगतना जड–चेतन बधा पदार्थोने उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वरूप
जोया छे. कोईपण सत्वस्तु उत्पाद–व्यय–ध्रुवता एवा त्रणे भावस्वरूप एकसाथे वर्ते
छे. आत्मा हो के जड हो–ते दरेक वस्तु स्वयमेव उत्पाद–व्यय–ध्रुवतारूप छे, तेमां अन्य
कोईनी अपेक्षा नथी.
सम्यक्त्वादि कोईपण वर्तमान भावनो उत्पाद, ते ज वखते पूर्वना मिथ्यात्वादि
भावनो व्यय, अने ते ज वखते जीवत्व वगेरे स्वभावभावनी ध्रुवता,–एम एक ज
समयमां जीवने उत्पाद–व्यय–ध्रुव वर्ते छे; अने ए रीते त्रणे काळना प्रवाहमां ते
पोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वरूपे ज रहेल छे.
अहा, एक ज समयमां उत्पाद–व्यय–ध्रुवतानुं होवापणुं, अने ते बीजा कोईना
कर्यां वगर,–आवुं सूक्ष्म वस्तुस्वरूप सर्वज्ञ विना कोई जाणी शके नहि. तेथी महान
स्तुतिकार समंतभद्रस्वामी सर्वज्ञनी स्तुति करतां कहे छे के अहो जिनदेव! जगतना
बधा पदार्थो समयेसमये उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप छे, एवुं आपनुं कथन ते ज आपनी
सर्वज्ञतानी निशानी छे.
आवुं वस्तुस्वरूप सर्वज्ञ सिवाय कोई जाणी शके नहि, कही शके नहि, ने
सर्वज्ञना भक्त सिवाय बीजा कोई ए वात झीली शके नहि.–अहो, सर्वज्ञदेव! आपनुं
अनेकान्त–शासन जगतमां अजोड छे.
कोई पण समये कोई पण वस्तुमां एम नथी बनतुं के तेना उत्पाद–व्यय–ध्रुव
तेनामां न होय. वस्तु प्रत्येक समये पोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वरूप पोताना
सद्भावमां ज वर्ते छे; तेने ते कदी छोडती नथी.
अहो, मारा उत्पाद–व्यय–ध्रुव जुदा नथी, तेम ज कोई बीजाने लीधे नथी. मारुं
सत्पणुं मारा उत्पाद–व्यय–ध्रुवमां छे.