Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : मागशर : २५०१
एक हतो हाथी
[बंधुओ, घणा वखतथी तमारी एक वार्ता अमारी पासे
लेणी हती. एक हतुं देडकुं, ने एक हतो वांदरो–ए बे वार्ता पछी
त्रीजी हाथीनी वातो कहेवानुं अमे कहेल, तेथी घणा बाळको तेनी
मागणी करता हता. ते वार्ता अहीं आपी छे; ते आनंदथी
वांचजो ने तेमांथी उत्तम बोध लेजो.
] –ब्र. ह. जैन
एक हतो हाथी..भारे मोटो हाथी! घणो सुंदर हाथी,
भगवान रामचंद्रजीना वखतनी आ वात छे.
महाराजा रावण एक वखत लंका तरफ जतो हतो, त्यां वच्चे सम्मेदशिखर धाम
आव्युं. आ महान तीर्थधामने देखीने रावणने घणो आनंद थयो, ने तेनी नजीक मुकाम कर्यो.
त्यां तो एकाएक मेघगर्जना जेवी गर्जना संभळावा लागी, लोको भयथी
नाशभाग करवा लाग्या; लश्करना हाथी–घोडा वगेरे पण भयथी चीस पाडवा लाग्या.
रावणे आ कोलाहल सांभळ्‌यो, ने महेल पर चडीने जोयुं के–एक घणो मोटो ने अत्यंत
बळवान हाथी झूलतो–झूलतो आवी रह्यो छे, तेथी आ गर्जना छे; ने तेनाथी डरीने
लोको भागी रह्या छे; हाथी घणो ज सुंदर हतो, आवो मजानो, ऊंचोऊंचो हाथी देखीने
रावण राजी थयो; ने तेने आ हाथी उपर सवारी करवानुं मन थयुं; एटले हाथीने
पकडवा माटे ते नीचे आव्यो ने हाथीनी सामे चाल्यो. रावणने देखतां ज हाथी तो तेनी
सामे दोड्यो. लोको तो आश्चर्यथी जोई रह्या के हवे शुं थाशे!
–पण राजा रावण घणो बहादूर हतो. ‘गजकेलि’ मां एटले के हाथी सामे
रमवानी कळामां ते होशियार हतो. पहेलांं तो तेणे हाथी सामे एक लाकडी फेंकी; हाथी
ते सूंघवा रोकायो, त्यां तो छलांग मारीने रावण ते हाथीना माथा उपर चडी गयो, ने
तेना कुंभस्थळ पर मूठीनो प्रहार करवा लाग्यो.
हाथी गभराई गयो, तेणे सूंढ ऊंची करीने रावणने पकडवा घणी महेनत करी;