त्रीजी हाथीनी वातो कहेवानुं अमे कहेल, तेथी घणा बाळको तेनी
मागणी करता हता. ते वार्ता अहीं आपी छे; ते आनंदथी
वांचजो ने तेमांथी उत्तम बोध लेजो.
भगवान रामचंद्रजीना वखतनी आ वात छे.
महाराजा रावण एक वखत लंका तरफ जतो हतो, त्यां वच्चे सम्मेदशिखर धाम
रावणे आ कोलाहल सांभळ्यो, ने महेल पर चडीने जोयुं के–एक घणो मोटो ने अत्यंत
बळवान हाथी झूलतो–झूलतो आवी रह्यो छे, तेथी आ गर्जना छे; ने तेनाथी डरीने
लोको भागी रह्या छे; हाथी घणो ज सुंदर हतो, आवो मजानो, ऊंचोऊंचो हाथी देखीने
रावण राजी थयो; ने तेने आ हाथी उपर सवारी करवानुं मन थयुं; एटले हाथीने
पकडवा माटे ते नीचे आव्यो ने हाथीनी सामे चाल्यो. रावणने देखतां ज हाथी तो तेनी
सामे दोड्यो. लोको तो आश्चर्यथी जोई रह्या के हवे शुं थाशे!
ते सूंघवा रोकायो, त्यां तो छलांग मारीने रावण ते हाथीना माथा उपर चडी गयो, ने
तेना कुंभस्थळ पर मूठीनो प्रहार करवा लाग्यो.