Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २५०१ आत्मधर्म : २५ :
पण रावण तेना बे दंतूशूळ वच्चेथी सरकीने नीचे ऊतरी गयो–आम घणीवार सुधी
हाथी साथे रमत करीने हाथीने थकावी दीधो; ने छेवटे रावण हाथीनी पीठ उपर चडी
गयो. हाथी पण जाणे राजा रावणने ओळखी गयो होय तेम शांत थईने, विनयवान
सेवकनी माफक ऊभो रह्यो. रावण तेना उपर बेसीने महेल तरफ आव्यो. चारेकोर
जयजयकार थई रह्यो.
रावणने आ हाथी खूब ज गमी गयो, तेथी तेने ते लंका लई गयो; लंकामां ते
हाथीनी प्राप्तिनो उत्सव करीने तेनुं नाम ‘त्रिलोकमंडन’ राख्युं. रावणना लाखो
हाथीमां ते पट्टहाथी हतो.
* * *
हवे, एकवार रावण सीताने उपाडी गयो; राम–लक्ष्मणे लडाई करीने रावणने
हराव्यो, ने सीताने लईने अयोध्या आव्या; त्यारे लंकाथी ते त्रिलोकमंडन हाथीने पण
पोतानी साथे लेता आव्या. राम–लक्ष्मणना ४२ लाख हाथीमां ते सौथी मोटो हतो, ने
तेनुं घणुं मान हतुं.
रामना भाई भरत अत्यंत वैरागी हता, ने मुनि थवा मांगता हता; पण राम–
लक्ष्मणे आग्रह करीने तेने रोक्या हता.
एकवार ते भरत सरोवरकिनारे गयेल; ते वखते गजशाळामां शुं बन्युं ते
सांभळो! मनुष्योनी भीड देखीने त्रिलोकमंडन हाथी गभरायो, ने सांकळ तोडीने
भयंकर अवाज करतो भाग्यो. हाथीनी गर्जना सांभळीने अयोध्याना लोको भयभीत
थई गया. हाथी तो दोड्यो जाय छे, राम–लक्ष्मण तेने पकडवा पाछळ दोडे छे. दोडतो
दोडतो ते सरोवर किनारे भरत सामे आव्यो. लोको चिंतामां पड्या–हाय! हाय!
भरतनुं शुं थशे! तेनी मा कैकेयी तो हाहाकार करवा लागी.
भरते हाथी सामे जोयुं, ने हाथीए भरतने देख्यो, बस, देखतावेंत ते एकदम
शांत थई गयो; हाथी तेने ओळखी गयो के अरे, आ भरत तो मारो पूर्वभवनो परम
मित्र! हाथीने पूर्वभवनुं ज्ञान थयुं; पूर्वभवमां भरत तेनो मित्र हतो, ने तेओ बंने
छठ्ठा स्वर्गमां साथे हता. हाथीने ते याद आव्युं ने घणो अफसोस थयो, के अरेरे!
पूर्वभवमां हुं आ भरतनी साथे ज हतो पण में भूल करी तेथी हुं देवमांथी आ पशु
थई गयो. अरेरे, आवो पशुनो अवतार! तेने धिक्कार छे.
–आम भरतने जोतां ज हाथी एकदम शांत थईने ऊभो रह्यो. जेम गुरु पासे