: मागशर : २५०१ आत्मधर्म : २७ :
पडती नथी! मोटा मोटा गजवैद्यने बताव्युं, तेओ पण हाथीना रोगने जाणी शक्या
नहि.–आ हाथीने लीधे आपणी आखी सेनानी शोभा छे. आवो मोटो बळवान हाथी,
–तेने एकाएक आ शुं थई गयुं! ते अमने समजातुं नथी. माटे तेनो कांईक उपाय करो!
हाथीनी आ वात सांभळी, राम ने लक्ष्मण पण चिंतामां पडी गया.
एवामां अचानक एक सुंदर बनाव बन्यो?
अयोध्यापुरीना आंगणे बे केवळी भगवंतो पधार्या....तेमनां नाम देशभूषण
अने कुलभूषण! राम–लक्ष्मणे वनगमन वखते आ बे मुनिवरोनो उपद्रव्य दूर करीने
तेमनी घणी भक्ति करी हती, ने ते वखते ते बंने मुनिवरोने केवळज्ञान थयुं हतुं. तेओ
जगतना जीवोनुं कल्याण करता–करता अयोध्यानगरीमां पधार्या. भगवान पधारतां
आखी नगरीमां आनंद–आनंद फेलाई गयो. सौ तेमना दर्शन करवा चाल्या....राम–
लक्ष्मण–भरत ने शत्रुघ्न पण त्रिलोकमंडन हाथी उपर बेसीने ते भगवंतोनां दर्शन
करवा चाल्या....ने आवीने धर्मोपदेश सांभळवा बेठा. भगवाने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूप मोक्षमार्ग बतावीने तेनो अद्भुत उपदेश आप्यो. ते सांभळीने सौने घणो
आनंद थयो.
त्रिलोकमंडन हाथीना आनंदनो पण पार नथी. ते केवळीभगवानना दर्शनथी
घणो ज प्रसन्न थयो छे, ने धर्मोपदेश सांभळीने तेनुं चित्त संसारथी उदास थई गयुं छे.
तेणे अपूर्व आत्मशांति प्राप्त करी छे, ने भगवानने नमस्कार करीने श्रावकनां व्रत
अंगीकार कर्या छे.–धन्य छे हाथीभाई, तमने! तमे आत्माने ओळखीने तमारुं जीवन
शोभाव्युं छे! तमे पशु नथी पण देव छो, धर्मात्मा छो, देवोथी पण महान छो.
बाळको, जुओ जैनधर्मनो प्रताप! एक हाथी जेवो पशुनो जीव पण जैनशासन
पामीने केवो महान थई गयो! तो तमेय आवुं मजानुं जैनशासन पामीने, हाथी जेवा
बहादूर थईने, आत्मानी ओळखाण करजो, ने उत्तम वैराग्यजीवन जीवजो!
भगवाननो उपदेश सांभळ्या पछी महाराजा लक्ष्मणे पूछयुं–हे भगवान! आ
त्रिलोकमंडन हाथी पहेलांं गजबंधन तोडीने क्रोधित थयो, ने पछी भरतने देखतां
एकदम शांत थई गयो–तेनुं शुं कारण? भरतने पण तेना उपर वहाल केम आवे छे?
ते कृपा करीने कहो.
त्यारे देशभूषण केवळीए कह्युं–आ हाथी प्रथम तो लोकोनी भीड देखीने
मदोन्मत्त थयो ने क्षोभ पाम्यो, तेथी बंधन तोडीने भाग्यो; अने भरतने देखीने शांत
थई गयो तेनुं कारण ए छे के भरतनो जीव अने आ हाथीने जीव बंने पूर्वभवनां
मित्रो छे–सांभळो, तेमनां पूर्वभव–