Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : पोष : २५०१
स्वरूप,–तेने पामीने हवे कोई पाप मने शोभतुं नथी, –एम अव्रतजन्य पापोथी
अत्यंत भयभीत वर्ते छे. मारा जीवनमां कोई नानुं पाप पण न हो, ने उज्जवळ
वीतरागी जीवन हो–एवी भावना होय छे.
–आ प्रमाणे श्रावक आ पुनित २१ गुणना धारक होय छे. मुमुक्षुए पण आ
दरेक गुणनुं स्वरूप विचारीने, पोतामां पण ते गुणने धारण करवा, एना वडे जीवन
पवित्रताथी शोभी ऊठशे.
एक करो.....एक नहि
मान घटाडो.................... ज्ञान नहीं.
दान वधारो......................... मान नहीं.
ज्ञान लो.................... कोईनो जीव नहीं.
भावना धर्मनी करो............... धननी नहीं.
जिनमार्गमां चालो.................... कुमार्गमां नहीं.
वीतरागताने धर्म समजो...... रागने नहीं.
पुन्यने संसारनुं कारण समजो मोक्षनुं नहीं.
जीवन योग माटे छे..... भोग माटे नहीं.
जिनबिंबने जुओ.......... सिनेमा नहीं.
गळेलुं पाणी पीओ.............. बीड नहीं.
मोहने हणो.................... जीवने नहीं.
धनने छोडो.................... धर्मने नहीं.
दोषने भूलो.................... गुणने नहीं.
गुणीयलनुं अनुसरण करो............... ईर्षा नहीं.
मोक्ष करो.................... बंधन नहीं.
मोहथी डरो.................... मोतथी नहीं.