: १२ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
बेन: अहा! सम्यग्दर्शननो तो अपार महिमा सांभळ्यो छे. भाई, ते सम्यग्दर्शननी
आराधना केवी रीते थाय?
भाई: आत्मानी खरेखरी लगनीपूर्वक, ज्ञान–संतो पासेथी तेनी समजण करवी जोईए,
अने पछी अंतर्मुख थईने तेनो अनुभव करवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे.
बेन: आवुं सम्यग्दर्शन थतां आत्मानो केवो अनुभव थाय?
भाई: अहा, एनुं शुं वर्णन करवुं! सिद्ध भगवान जेवो वचनातीत आनंद त्यां
अनुभवाय छे.
बेन: हें भाई! मोक्षशास्त्रमां कह्युं छे के ‘तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्द्रर्शनम्’ ते व्यवहारश्रद्धा
छे के निश्चय?
भाई: ते निश्चयश्रद्धा छे; केमके त्यां मोक्षमार्ग बताववो छे; अने खरो मोक्षमार्ग तो
निश्चयरत्नत्रय ज छे.
छे.
बेन: आ नव तत्त्वोमां उपादेय तत्त्वो कया–क्या छे?
भाई: नव तत्त्वोमांथी शुद्ध जीवतत्त्व उपादेय छे, तथा संवर–निर्जरा एक अंशे उपादेय
छे ने मोक्षतत्त्व सर्वथा उपादेय छे.
हेय छे.
बेन: वाह! आजे सम्यग्दर्शननी अने हेय–उपादेयतत्त्वनी घणी सरस चर्चा थई; आना
उपर ऊंडो विचार करीने आपणे सम्यग्दर्शननो प्रयत्न करवा जेवुं छे.
भाई: हा, बेन! सौए ए ज करवा जेवुं छे; जीवनमां तुं ए ज प्रयत्न करजे; एनाथी
ज जीवननी सफळता छे.