
* पोतानी पर्यायने वस्तु पोते करे छे, कोई बीजुं तेने करतुं नथी; वस्तु पोते
जिनप्रवचनमां जेवुं प्रकाश्युं छे तेवुं जगतमां बीजे क्यांय नथी.
के–जेम घंटी–वस्तु ते एकला वजनरूप नथी, तेमां बीजा अनेक धर्मो (स्पर्श–
रंग वगेरे) पण छे; ए रीते घंटी ते एकली वजनरूपे नथी, तेमज एकलो
वजनगुण ते ज आखी घंटी नथी;–आ प्रकारे ते घंटीने अने वजनगुणने
लक्षणभेद छे, पण सत्ताभेद नथी. सत्ताए तो घंटीने अने वजनने एकत्व छे,
जुदाई नथी.
तेम एक आत्मवस्तुमां द्रव्यपणुं–गुणपणुं–पर्यायपणुं एकसाथे छे; तेमां आखी
आत्मवस्तु कोई एक ज (ज्ञान वगेरे) गुणरूप नथी, तेमां बीजा (आनंद
वगेरे) अनंत धर्मो पण छे; ए रीते आखी वस्तु एक ज गुणरूप नथी; तेम ज
एक ज (ज्ञानादि) गुण ते आखी वस्तु नथी;–आ प्रकारे वस्तुने अने तेना
गुणने लक्षणभेद भले हो, पण सत्ताभेद नथी; एक ज सत्तामां बधुं समाई
जाय छे, एटले सत्ता अपेक्षाए तो आत्मवस्तुने अने तेना गुण–पर्यायोने
पोताना सत् गुण–पर्यायोथी आत्मा जुदो पडी शके नहि. अभेद अनुभूतिमां
पर्याय गौण छे पण अभावरूप नथी.
पोतामां द्रव्य–गुण–पर्यायने कथंचित् भिन्नता ने कथंचित् एकता.–अहो, आवुं
अद्भुत वस्तुस्वरूप सर्वज्ञदेवे प्रकाश्युं छे, सम्यग्द्रष्टि ज तेने जाणे छे.
वर्ते