: १४ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
एवो आत्मानो स्वभाव छे. तेमां जे उत्पाद–व्ययरूप भाव छे ते पोते ध्रुव
नथी, अने जे ध्रुवभाव छे ते पोते उत्पाद–व्ययरूप भाव नथी; पण
वस्तुअपेक्षाए तो उत्पाद–व्यय–ध्रुव त्रणे स्वरूप एक ज अस्तित्व छे, एक ज
आत्मा एक साथे एवा उत्पाद–व्यय–ध्रुवभावे वर्ते छे.
* एक वस्तुना उत्पाद–व्यय–ध्रुवमां बीजा बधायनो सदाकाळ सर्वथा अभाव छे;
पण तेवो अभाव उत्पाद–व्यय–ध्रुव वच्चे (के द्रव्य–गुण–पर्याय वच्चे) नथी.
द्रव्यथी जुदा कोई गुण–पर्यायो नथी; बधुं एक ‘सत्’ छे.
* जेम, चेतनआत्मा ने जडकर्म;
तेमां आत्मानो अभाव ते कर्म छे, कर्मनो अभाव ते आत्मा छे;
चेतननो अभाव ते जड छे, जडनो अभाव ते चेतन छे.
* तेम, द्रव्यनो अभाव ते पर्याय, ने पर्यायनो अभाव ते द्रव्य–एम नथी; एक ज
वस्तुमां द्रव्य ने पर्याय बंनेनो सद्भाव राखीने वात छे. एक ज वस्तुमां रहेलां
जे द्रव्य ने पर्याय तेमां, द्रव्यपणुं ते पर्याय नथी ने पर्यायपणुं ते द्रव्य नथी.
अंदरमां एकबीजापणे तत्पणानो अभाव (अतत्–भाव) एटलो भेद होवा
छतां वस्तुपणे तेमने एकता छे; वस्तुमां बंनेनो सद्भाव छे.
* चेतननो अभाव ते जड, ने जडनो अभाव ते चेतन,
–एम तेमने तो भिन्नभिन्न बे वस्तुपणुं छे.
* पण तेवी रीते कांई–द्रव्यनो अभाव ते गुण, ने गुणनो अभाव ते द्रव्य, –एम
तेमने भिन्नभिन्न बे वस्तुपणुं नथी.
* पण एक ज वस्तुनी सत्तामां रहीने तेमने अन्योन्यअभाव छे. –जेमके
ज्ञानगुण ते सुखगुण नथी; सुखगुण ते ज्ञानगुण नथी; परंतु आत्मवस्तु तो
ज्ञानगुण तेमज सुखगुण एम बधा गुणस्वरूपे सत् छे.
* वस्तुमांथी कोई गुण–पर्यायने जुदा पाडी शकाय नहि. तेथी अभेदवस्तुनी
द्रष्टिथी तो जे ज्ञान छे ते ज सुख छे; द्रव्य ते गुणपर्याय छे, गुण–पर्यायो ते द्रव्य
छे, तेमने भिन्न सत्ता नथी.
* गुण–पर्याय वगर वस्तु रही शकती नथी. वस्तु वगर–गुण–पर्यायो रही शकता
नथी.