
अनुभवे छे.
कर्युं छे. आवी वस्तुनुं ज्ञान थतां अपूर्व आनंद सहित सम्यग्दर्शन पण जरूर
थाय छे. वस्तुस्वरूपना आवा अपूर्व ज्ञानथी जुदुं कांई सम्यग्दर्शन नथी.
वस्तुपणुं नथी, तेनी तो एक ज सत्ता छे.
छे.)
अभावे बीजानो पण अभाव होय छे; आत्मा न होय त्यां ज्ञान न होय, ज्ञान
न होय त्यां आत्मा न होय. ज्ञान होय त्यां आत्मा होय, आत्मा होय त्यां
ज्ञान होय ज. –आ रीते तेमने अविनाभाव–एकवस्तुपणुं छे; स्वभावथी ज
दरेक वस्तु पोताना गुण–पर्यायस्वरूप छे, तेनाथी तेने जुदी पाडी शकाती नथी.
वस्तु पोते ज पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायरूप अस्तित्ववाळी छे, त्यां बीजाने
कारणे तेमां कांई थाय–ए वात क््यां रहे छे?
द्रव्यथी जुदा पाडी शकाय नहि, तेमज तेमां बीजानो प्रवेश थई शके नहि.
पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायरूप अस्तित्व पोतामां, ने परना द्रव्य–गुण–पर्यायनुं
अस्तित्व परमां; –एम स्वरूपनी स्वाधीन सत्तानो निर्णय ‘हे वीरनाथ
भगवान! ’ आपना शासनमां ज थाय छे. यथार्थ वस्तुस्वरूप बतावीने आपे
मोक्षमार्ग खोल्यो छे. ते आपनो मोटो उपकार याद करीने आपना निर्वाणना
अढीहजारवर्षनो उत्सव ऊजवीए छीए.
पोताना