Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २५०१ आत्मधर्म : १५ :
–आम बधुंय पोतामां समावीने, धर्मी जीव पोतानी सत्ताने पोतामां ज परिपूर्ण
अनुभवे छे.
* अहो, आवी परम गंभीर आत्मवस्तुनुं ज्ञान वीतरागमार्गना संतोए प्रसिद्ध
कर्युं छे. आवी वस्तुनुं ज्ञान थतां अपूर्व आनंद सहित सम्यग्दर्शन पण जरूर
थाय छे. वस्तुस्वरूपना आवा अपूर्व ज्ञानथी जुदुं कांई सम्यग्दर्शन नथी.
* जेम शरीरने अने आत्माने बे वस्तुपणुं छे, तेम आत्माने अने ज्ञानने कांई बे
वस्तुपणुं नथी, तेनी तो एक ज सत्ता छे.
* शरीर अने आत्माने बे वस्तुपणुं होवाथी एकना अभावे बीजानो अभाव
थतो नथी; (जेमके सिद्धभगवान, त्यां शरीर न होवा छतां आत्मानी सत्ता
छे.)
* ज्ञानने अने आत्माने बे वस्तुपणुं नथी पण एक ज वस्तुपणुं छे, तेथी एकना
अभावे बीजानो पण अभाव होय छे; आत्मा न होय त्यां ज्ञान न होय, ज्ञान
न होय त्यां आत्मा न होय. ज्ञान होय त्यां आत्मा होय, आत्मा होय त्यां
ज्ञान होय ज. –आ रीते तेमने अविनाभाव–एकवस्तुपणुं छे; स्वभावथी ज
दरेक वस्तु पोताना गुण–पर्यायस्वरूप छे, तेनाथी तेने जुदी पाडी शकाती नथी.
* द्रव्यनो स्वभाव एटले के वस्तुनुं अस्तित्व, द्रव्य–गुण–पर्यायमां रहेल छे. ज्यां
वस्तु पोते ज पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायरूप अस्तित्ववाळी छे, त्यां बीजाने
कारणे तेमां कांई थाय–ए वात क््यां रहे छे?
* उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यात्मक सत् परिणाम ए तो द्रव्यनो स्वभाव ज छे, एने
द्रव्यथी जुदा पाडी शकाय नहि, तेमज तेमां बीजानो प्रवेश थई शके नहि.
पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायरूप अस्तित्व पोतामां, ने परना द्रव्य–गुण–पर्यायनुं
अस्तित्व परमां; –एम स्वरूपनी स्वाधीन सत्तानो निर्णय ‘हे वीरनाथ
भगवान! ’ आपना शासनमां ज थाय छे. यथार्थ वस्तुस्वरूप बतावीने आपे
मोक्षमार्ग खोल्यो छे. ते आपनो मोटो उपकार याद करीने आपना निर्वाणना
अढीहजारवर्षनो उत्सव ऊजवीए छीए.
* ज्ञान, सुख के आनंद, ते आत्माना अस्तित्वमां छे, आत्माना अस्तित्वथी
बहार नथी. पर्यायमां आनंद, गुणमां आनंद, द्रव्यमां आनंद–एम धर्मीने
पोताना