Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां आनंद देखाय छे. आनंदस्वभावनी जेम बधा
स्वभावो द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां छे. –आम द्रव्य–गुण–पर्यायनी पोतामां
एकता जाणनार धर्मीजीव, परना अस्तित्वथी अत्यंत भिन्न एवा पोताना
अस्तित्वने, पोतामां ज समाप्त थतुं अनुभवे छे; –आवी अनुभूति भगवान
सर्वज्ञदेवना अनेकान्तमार्ग सिवाय बीजे क््यांय मळे तेम नथी.
* भाई, तारा द्रव्य–गुण–पर्यायना अस्तित्वथी बहार क््यांय तारो आनंद शोधवा
जईश तो ते कदी नहि मळे तारो आनंद, तारुं सुख, तारो धर्म, तारुं ज्ञान–ए
बधुं तारा अस्तित्वमां समाय छे. द्रव्य पोताना गुण–पर्यायथी जुदुं वर्ततुं नथी,
ने गुण–पर्यायो द्रव्यथी जुदा वर्तता नथी; –ए बधा स्वयमेव एक सत्तारूप छे.
एक ज सत्ता घणांरूपने (द्रव्य–गुण–पर्याय, उत्पाद–व्यय–ध्रुवता वगेरेने) एक
साथे पोताना अस्तित्वमां धारण करे छे.–ज्यारे जुओ त्यारे वस्तुनुं अस्तित्व
पोतामां ज परिपूर्ण छे, –ए जैनशासननी अलौकिक वात छे. आवुं जिनप्रवचन
जे समजे ते पोताना स्वरूप–अस्तित्वमां ज संतुष्ट रहेतो थको, ने अन्यमां नहि
वर्ततो थको, स्वभावथी ज ज्ञान–आनंदरूपे परिणमे छे. अहो, ज्ञान–आनंदनो
आवो मार्ग बतावीने वीतरागीसंतोए महान उपकार कर्यो छे.
* हे भाई, तारो स्वभाव केवो छे? ने तारा अस्तित्वमां शुं–शुं भर्युं छे–ते तो जो!
तारा उत्पाद–व्यय–ध्रुवपरिणाम तारामां ज छे, तारा बधा द्रव्य–गुण–पर्याय
तारामां ज छे; तारा ज्ञान–आनंद वगेरे अनंत स्वभावो तारामां ज भर्या छे.
तारा पूरा अस्तित्वने तारामां देखतां तने महा आनंद थशे, ने तारे बहारमां
क्यांय जोवानुं नहि रहे. तारामांथी ने तारामांथी तने तारा श्रद्धा–ज्ञान–आनंद
आवशे. –महावीर भगवानना जिनशासननी आ विशिष्टता छे के पोतानी
पूर्णता पोतामां ज बतावे छे...ने ए रीते अंतर्मुख अभेद परिणामवडे जीवने
स्वसमयमां स्थित करे छे. ‘जय महावीर’
हे भव्य! तारा आत्माने तुं आवा
मोक्षमार्गमां जोड! ने बीजा भावोनुं ममत्व
छोड! स्वद्रव्यने आश्रित सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूप जे मोक्षमार्ग तेमांज तारा
आत्माने जोड–एम सूत्रनी अनुमति छे.