
स्वभावो द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां छे. –आम द्रव्य–गुण–पर्यायनी पोतामां
एकता जाणनार धर्मीजीव, परना अस्तित्वथी अत्यंत भिन्न एवा पोताना
अस्तित्वने, पोतामां ज समाप्त थतुं अनुभवे छे; –आवी अनुभूति भगवान
जईश तो ते कदी नहि मळे तारो आनंद, तारुं सुख, तारो धर्म, तारुं ज्ञान–ए
बधुं तारा अस्तित्वमां समाय छे. द्रव्य पोताना गुण–पर्यायथी जुदुं वर्ततुं नथी,
ने गुण–पर्यायो द्रव्यथी जुदा वर्तता नथी; –ए बधा स्वयमेव एक सत्तारूप छे.
एक ज सत्ता घणांरूपने (द्रव्य–गुण–पर्याय, उत्पाद–व्यय–ध्रुवता वगेरेने) एक
साथे पोताना अस्तित्वमां धारण करे छे.–ज्यारे जुओ त्यारे वस्तुनुं अस्तित्व
पोतामां ज परिपूर्ण छे, –ए जैनशासननी अलौकिक वात छे. आवुं जिनप्रवचन
जे समजे ते पोताना स्वरूप–अस्तित्वमां ज संतुष्ट रहेतो थको, ने अन्यमां नहि
आवो मार्ग बतावीने वीतरागीसंतोए महान उपकार कर्यो छे.
तारा उत्पाद–व्यय–ध्रुवपरिणाम तारामां ज छे, तारा बधा द्रव्य–गुण–पर्याय
तारामां ज छे; तारा ज्ञान–आनंद वगेरे अनंत स्वभावो तारामां ज भर्या छे.
तारा पूरा अस्तित्वने तारामां देखतां तने महा आनंद थशे, ने तारे बहारमां
क्यांय जोवानुं नहि रहे. तारामांथी ने तारामांथी तने तारा श्रद्धा–ज्ञान–आनंद
आवशे. –महावीर भगवानना जिनशासननी आ विशिष्टता छे के पोतानी
पूर्णता पोतामां ज बतावे छे...ने ए रीते अंतर्मुख अभेद परिणामवडे जीवने
छोड! स्वद्रव्यने आश्रित सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूप जे मोक्षमार्ग तेमांज तारा
आत्माने जोड–एम सूत्रनी अनुमति छे.