Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २५०१ आत्मधर्म : १७ :
(गतांकमां पूछेला पांच प्रश्नोनो खुलासो)

(१) मागशर सुद अगियारसे जेओ मुनि थया, ने पछी मागशर वद बीजे जेओ
केवळज्ञान पाम्या, ते तीर्थंकर कोण?
(उत्तर) मल्लिनाथ भगवान. (मुनि थया पछी छ दिवसमां ज केवळज्ञान पाम्या.)
(२) एक वखत एवुं बन्युं के, एक भगवान पासे सुंदर वस्तु त्रण हती ते वधीने
चार थई; बे वस्तु वधीने त्रण पूरी थई; ने असुंदर वस्तु बे हती ते घटीने
एक ज रही. आ बन्युं ते दिवसे मागशर सुद ११ हती. तो ते कया भगवान?
अने शुं बन्युं?
(उत्तर) ते भगवान मल्लिनाथ; अने बन्युं एवुं के मागशर सुद अगियारसे जाति
स्मरण थतां भगवानने वैराग्य थयो ने दीक्षा लीधी; दीक्षा पछी ध्यानमां
शुद्धोपयोगवडे सातमुं गुणस्थान अने मनःपर्ययज्ञान प्रगट्युं; ते भगवान पासे
पहेलां सम्यक् मति–श्रुत–अवधि ए त्रण सुंदर ज्ञान हता, तेमां मनःपर्यय
वधतां चार ज्ञान थया; सम्यग्दर्शन ने ज्ञान तो हतां तेमां सम्यक्चारित्रदशा
वधतां बेने बदले त्रण रत्नो पूरा थया; असुंदर–वस्तु एटले कषाय भावो, ते
बे (प्रत्याख्यान तथा संज्वलन) हता, तेमांथी प्रत्याख्यानावरण कषाय छूटी
जतां मात्र संज्वलन कषाय रह्यो.
(३) एकवार एक जीवने एवुं बन्युं के, ते एक गतिमांथी बीजी गतिमां गयो, तेनी
आखी गति पलटी गई, गति पलटवा छतां तेनुं ज्ञान एटलुं ने एटलुं ज रह्युं;
न वध्युं; के न घट्युं; ज्ञान एटलुं ने एटलुं रहेवा छतां तेना क्षायिकभावो वधी
गया. आ वात बनी आसो वद अमासे तो ते जीव कोण? अने शुं बन्युं?
(उत्तर:) आसो वद अमासे महावीर भगवान मोक्षगतिने पाम्या. त्यारनी आ वात
छे. भगवान मनुष्यगतिमांथी सिद्धगतिमां गया, एटले तेमनी गति तो पलटी
गई; गति पलटवा छतां तेमनुं केवळज्ञान तो एम ने एम रह्युं, ते न वध्युं के
न घट्युं (केमके क्षायिकभाव सदा हानि–वृद्धिथी रहित होय छे). ज्ञान एटलुं ने
एटलुं रह्युं होवा छतां, अघातिकर्मोना क्षयने लीधे तेमने बीजा गुणोमां
क्षायिकभाव प्रगटयो एटले तेमने क्षायिकभावो वधी गया. पहेलांं चार
अघातिकर्मना उदयने लीधे उदयभावो हता, हवे ते कर्मोनो क्षय थतां भगवानने
सर्वे गुणो क्षायिकभावरूप थई गया.