Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २५०१ आत्मधर्म : १९ :
* लेखांक पहेलो *
दुनियामां क्यांय पण शांति–खरेखरी शांति–
होय तो ते आत्मामां ज छे, ने आत्माना स्वसंवेदनथी
ज तेनुं वेदन थाय छे. जिनमार्गी सन्तो आवी अपूर्व
शांतिने पाम्या छे, ने एवी शांतिना पिपासु भव्य
जीवोने कहे छे के तमे पण अपूर्व शांति पामवा माटे
आत्माने ओळखो. आत्माने ओळखवा माटे
जिनमार्गमां अनेक शास्त्रोद्वारा तेनुं स्वरूप बताव्युं छे.
एवुं ज एक शास्त्र ‘समाधिशतक’ छे, तेमां आत्माने
जाणीने तेनी अपूर्व शांति पामवानो उपदेश
सुगमशैलिथी दीधो छे. तेनो सार आपणे आ
लेखमाळामां आपीशुं. हे साधर्मीओ! अपूर्व शांति
पामवा आत्माने ओळखो. –ब्र. ह. जैन
आ समाधितंत्र शरू थाय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते समाधि छे. समाधि
कहो के आत्मानी शांति कहो, तेनी प्राप्ति केम थाय? तेवी ‘आत्मभावना’ नुं वर्णन श्री
पूज्यपादस्वामीए आ समाधिशतकमां कर्युं छे.
श्री पूज्यपादस्वामी परम दिगंबर संत हता; तेमनुं बीजुं नाम देवनंदी हतुं.
लगभग १४०० वर्ष पहेलांं तेओ आ भरतभूमिमां विचरता हता; अने जेम श्री
कुंदकुंदाचार्यदेव सीमंधर भगवान पासे विदेहक्षेत्रे गया हता तेम आ पूज्यपादस्वामी
पण विदेहीनाथना दर्शनथी पावन थया हता.–एवो उल्लेख श्रवणबेलगोलना प्राचिन
शिलालेखोमां छे. तेमणे सर्वार्थसिद्धि (तत्त्वार्थ सूत्रनी टीका), तेमज जैनेन्द्रव्याकरण,
ईष्टोपदेश