Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 23 of 49

background image
: २० : आत्मधर्म : पोष : २५०१
वगेरे महानग्रंथो रच्या छे. तेमनी अगाधबुद्धिने लीधे योगीओए तेमने
‘जिनेन्द्रबुद्धि’ कह्या छे. तेओ परम ब्रह्मचारी तेम ज विशिष्ट ऋद्धिओना धारक
हता. आवा महान आचार्य श्री पूज्यपादस्वामीए रचेला समाधितंत्र (अथवा
समाधिशतक) उपर प्रवचनो शरू थाय छे. (अगाउ वीर सं. २४८२ मां आ शास्त्र
पर प्रवचनो थयेला, ते ‘आत्मभावना’ नामना पुस्तकरूपे छपायेला छे; फरी १८
वर्षे प्रवचनमां वंचाय छे.)
प्रथम मंगलाचरणमां सिद्ध–आत्माने नमस्कार कर्या छे.
जेमना द्वारा आत्मा आत्मारूपे जणाय छे अने पर पररूपे जणाय छे, तथा
जेओ अक्षय अनंत बोधस्वरूप छे एवा सिद्धआत्माने अमारा नमस्कार हो.
हे सिद्ध परमात्मा! आपे आत्माने आत्मारूपे जाण्यो छे ने परने पररूपे जाण्या
छे, अने ए रीते जाणीने आप अक्षय अनंतबोधस्वरूप थया छो, तेथी एवा पदनी
प्राप्ति अर्थे हुं आपने नमस्कार करुं छुं.
जुओ, आ मंगलाचरण!! मंगलाचरणमां सिद्ध भगवानने याद कर्या छे. सिद्ध
भगवानने जाणतां आ आत्मा पोताना वास्तविक स्वरूपे जणाय छे, ने
सिद्धभगवानथी जुदुं एवुं बधुंय पररूपे जणाय छे.
सिद्धभगवान जेवा पोताना आत्माने परथी भिन्न जाण्यो तेमां बधां शास्त्रोनुं
भणतर आवी गयुं. ‘आ आत्मानो स्वभाव सिद्धभगवान जेवो छे, जेवो
सिद्धभगवाननो आत्मा छे तेवो मारो आत्मा छे, ने ते सिवाय जे रागादि छे ते मारा
आत्मानो स्वभाव नथी’ आवी ओळखाण करवी ते बधां शास्त्रोनो सार छे.
हे सिद्ध परमात्मा! आप केवळज्ञाननी मूर्ति छो, परिपूर्ण ज्ञानस्वरूप छो, ने
रागरहित छो; एवो ज मारा आत्मानो स्वभाव छे–आ प्रमाणे सिद्धभगवानने
ओळखतां तेवो पोतानो आत्मस्वभाव जाण्यो एटले तेणे पोताना आत्मामां ज सिद्ध–
भगवानने उतारी, अंतर्मुख थईने सिद्धभगवानने नमस्कार कर्या.
सिद्धना आत्माने जाणतां रागरहित ने ज्ञानसहित एवो आत्मा जणाय छे.
सिद्धनो आत्मा शुद्ध छे, तेथी तेने जाणतां आत्मानुं शुद्धस्वरूप जणाय छे, ने स्वपरनुं
भेदज्ञान थाय छे. जेणे आवुं भेदज्ञान कर्युं तेणे सिद्धभगवानने परमार्थ नमस्कार कर्या.
सिद्धमां जे छे ते स्व; सिद्धमां जे नथी ते पर.
आ रीते सिद्धभगवानने जाणतां स्व–परनुं भेदज्ञान थाय छे; माटे
मंगलाचरणमां