Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 24 of 49

background image
: पोष : २५०१ आत्मधर्म : २१ :
सिद्धभगवानने नमस्कार कर्या छे. आ रीते सिद्धभगवान जेवा शुद्धआत्मानो निर्णय
करवो ते सम्यग्दर्शन छे, ते पहेलो अपूर्व धर्म छे, तेमां आत्मानी अपूर्व शांतिना
वेदनरूप समाधि छे.
जे जीव मोक्षार्थी छे....आत्मार्थी छे....‘हुं कोण छुं ने मारुं हित केम थाय? ’ एम
जे सिद्ध भगवानमां
होय ते स्व;
जे सिद्ध भगवानमां
न होय ते पर.

आ प्रमाणे सिद्धभगवानने जाणतां आत्मानुं सत्यस्वरूप ओळखाय छे.–जे
मोक्षनो अभिलाषी होय ते जीव सिद्धभगवानने पोताना ध्येयरूपे राखीने आ प्रमाणे
स्व–परनुं भेदविज्ञान करे छे: –ईन्द्रियो–शरीर–चारगति–राग के गुणभेदना विकल्पो ए
बधायथी पार, सहज चैतन्यरूप एक आत्माने स्वसंवेदनथी अनुभवमां लईने परम
शांतिने वेदे छे. आथी ईष्टपणे स्वीकारीने सिद्धपरमात्माने नमस्कार कर्या छे.
अहीं एम जाणवुं के सिद्धभगवानने नमस्कार कर्या तेमां पांचे परमेष्ठी–
भगवंतो आवी जाय छे; केमके आचार्य वगेरेने पण एकदेश–सिद्धपणुं प्रगट्युं छे,
आत्माना अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदनी अंशे प्राप्ति तेमने पण थई छे, तेथी तेओ पण
ईष्ट छे. जेटला सम्यक्त्वादि भावो छे ते बधाय जीवने ईष्ट छे;अने जे कोई मिथ्यात्वादि
परभावो छे ते जीवने ईष्ट नथी.
सिद्धभगवानना आत्मामां जे भावो छे ते भावो आत्माने शांतिकारी हितरूप
छे, ने सिद्धभगवानमांथी जे भावो नीकळी गया ते भावो आत्माने अहितरूप छे.–
आम ओळखीने