Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
पोताना ज्ञानानंदस्वरूपना आदरथी मोहादिभावोनो नाश करवो ते कर्मबंधथी छूटीने
मुक्त थवानो उपाय छे.
ज्ञानी गुरुना उपदेशथी एम जाण्युं के “मारा आत्मानो स्वभाव शुद्ध
सिद्धसमान छे, रागादि के शरीरादि मारुं स्वरूप नथी; मारी पर्यायमां विकार अने दुःख
छे पण ते मारुं वास्तविक स्वरूप नथी;” –आ प्रमाणे गुरुना उपदेशथी जाणीने, अथवा
पूर्वे सांभळ्‌युं होय तेना संस्कारथी, जीव ज्यारे पोताना शुद्ध स्वरूपनी प्रतीत करे छे
त्यारे मिथ्यात्वादि कर्मोनो उपशमादि थई जाय छे; तथा सम्यग्दर्शन थतां तत्त्वोनी
विपरीतबुद्धि छूटी जाय छे, ने पोताना शुद्ध आत्मस्वरूप सिवाय बीजे क्यांय
आत्मबुद्धि थती नथी. आ रीते शुद्ध आत्माने आत्मारूपे, विकारने विकाररूपे, ने परने
पररूपे जाणे छे, एटले सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान थाय छे; पछी आत्मस्वरूपमां स्थिर
थतां परथी उदासीनतारूप चारित्र थाय छे; –आवां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते
मोक्षनो उपाय छे. स्वने स्व–रूपे अने परने पर–रूपे जाणीने, परथी उदासीन थईने
स्वमां ठरवुं ते मोक्षनो उपाय छे; सिद्धभगवानने ओळखतां आवो मोक्षनो उपाय शरू
थाय छे, –माटे मांगळिकमां ईष्टदेव तरीके सिद्धभगवानने नमस्कार कर्या.
सिद्धदशा ते आत्मानुं ध्येय छे, ते ज आत्मानुं ईष्ट छे. शास्त्रकर्ता पूज्यपाद
स्वामीने तेम ज व्याख्याता अने श्रोताजनोने आवुं शुद्ध आत्मपद प्राप्त करवानी उत्कट
अभिलाषा छे, तेथी तेवा शुद्धपदने पामेला सिद्धभगवंतोने नमस्कार करीने शरूआत
करी छे. जेने जे वहालुं होय तेने ज ते नमस्कार करे छे.
अहो! अमने आ एक सिद्धपद ज परमप्रिय छे, ते सिवाय रागादि के संयोग
अमने प्रिय नथी; माटे शुद्धपदने पामेला सिद्धभगवंतोने नमस्कार करीने शुद्ध
आत्मानो ज अमे आदर करीए छीए.
सर्वज्ञ भगवान अरिहंतदेव शरीरसहित होवा छतां आहारादि दोषथी रहित छे.
ज्यां आत्माना अनंत आनंदनो भोगवटो प्रगटी गयो छे–त्यां क्षुधादि दोष होता नथी
ने आहारादि पण होता नथी. भगवानने राग–द्वेषादि दोषो पण नथी. आ सिवाय
अन्य कुदेव तो रागादिसहित छे, क्षुधादि दोष सहित छे, एटले ते आत्माना ईष्ट नथी.
अतीन्द्रिय आनंद सहित एवुं सर्वज्ञपद ज आत्मानुं परम ईष्ट छे, तेथी तेने पामेला
अरिहंतोनी ओळखाणपूर्वक तेमनो आदर करीने तेमने नमस्कार करीए छीए.