
मुक्त थवानो उपाय छे.
छे पण ते मारुं वास्तविक स्वरूप नथी;” –आ प्रमाणे गुरुना उपदेशथी जाणीने, अथवा
पूर्वे सांभळ्युं होय तेना संस्कारथी, जीव ज्यारे पोताना शुद्ध स्वरूपनी प्रतीत करे छे
त्यारे मिथ्यात्वादि कर्मोनो उपशमादि थई जाय छे; तथा सम्यग्दर्शन थतां तत्त्वोनी
विपरीतबुद्धि छूटी जाय छे, ने पोताना शुद्ध आत्मस्वरूप सिवाय बीजे क्यांय
आत्मबुद्धि थती नथी. आ रीते शुद्ध आत्माने आत्मारूपे, विकारने विकाररूपे, ने परने
पररूपे जाणे छे, एटले सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान थाय छे; पछी आत्मस्वरूपमां स्थिर
थतां परथी उदासीनतारूप चारित्र थाय छे; –आवां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते
मोक्षनो उपाय छे. स्वने स्व–रूपे अने परने पर–रूपे जाणीने, परथी उदासीन थईने
स्वमां ठरवुं ते मोक्षनो उपाय छे; सिद्धभगवानने ओळखतां आवो मोक्षनो उपाय शरू
थाय छे, –माटे मांगळिकमां ईष्टदेव तरीके सिद्धभगवानने नमस्कार कर्या.
अभिलाषा छे, तेथी तेवा शुद्धपदने पामेला सिद्धभगवंतोने नमस्कार करीने शरूआत
करी छे. जेने जे वहालुं होय तेने ज ते नमस्कार करे छे.
आत्मानो ज अमे आदर करीए छीए.
ने आहारादि पण होता नथी. भगवानने राग–द्वेषादि दोषो पण नथी. आ सिवाय
अन्य कुदेव तो रागादिसहित छे, क्षुधादि दोष सहित छे, एटले ते आत्माना ईष्ट नथी.
अतीन्द्रिय आनंद सहित एवुं सर्वज्ञपद ज आत्मानुं परम ईष्ट छे, तेथी तेने पामेला
अरिहंतोनी ओळखाणपूर्वक तेमनो आदर करीने तेमने नमस्कार करीए छीए.