: पोष : २५०१ आत्मधर्म : २५ :
शरीरादिथी आत्मा भिन्न छे केमके ते भिन्न लक्षणथी लक्षित छे; जेओ भिन्न
लक्षण वडे लक्षित थाय छे तेओ भिन्न होय छे;–जेम के जळ अने अग्निमां लक्षण
(शीत अने उष्ण) भिन्न भिन्न होवाथी तेओ प्रसिद्धपणे जुदा छे. आत्मा उपयोग–
स्वरूपथी लक्षित छे, अने शरीरादि तेनाथी विरुद्ध एवा अनुपयोग जडस्वरूपे लक्षित
छे, तेथी तेमने जुदापणुं छे. ए ज प्रमाणे रागादि भावोथी पण ज्ञाननी भिन्नता छे,
केमके ज्ञानमां शांतिनुं वेदन छे, ने रागमां आकुळता छे, ए रीते बंनेनां लक्षण जुदां छे.
मारो आत्मा अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप छे; मने मारो आनंद केम प्राप्त थाय–ए
ज एक अभिलाषा छे,–एम जेने धगश जागी होय एवा जीवने संबोधीने आत्मानुं
स्वरूप वीतराग संतोए कह्युं छे.
मारे तो आत्मानो आनंद जोईए छे, कर्मना संबंध वगरनो–ईन्द्रियना
विषयोना संबंध वगरनो, केवळ आत्मानो अतीन्द्रिय आनंद मारे जोईए छे,–आवी
जेने झंखना थई छे तेने माटे कर्मादिथी भिन्न आत्मानुं स्वरूप बतावे छे, केमके एवा
आत्मानुं स्वरूप जाणवाथी ज अतीन्द्रियसुख थाय छे; माटे आगमथी, युक्तिथी ने
अनुभवथी आवा शुद्धआत्मानुं स्वरूप जाणवा योग्य छे.
अंदर राग–द्वेषादि भावो थाय छे तेओ खरेखर आत्माना ज्ञानलक्षणथी भिन्न
छे;, केम के राग–द्वेष तो आकुळता–लक्षणवाळा छे, ते स्व–परने जाणता नथी, ते
बर्हिमुख भाव छे, ने ज्ञानस्वभाव तो शांत अनाकुळ छे, अंतर्मुख थतां ते वेदाय छे,
स्व–परने जाणवानो तेनो स्वभाव छे; आ रीते भिन्न लक्षण द्वारा राग अने ज्ञाननी
भिन्नता जाणीने, ज्ञानलक्षण वडे आत्माने ओळखवो. सर्व प्रकारना लक्षण वडे
अनुमानथी–युक्तिथी आत्माने देहादिथी जुदो ने रागादिथी जुदो ज्ञानदर्शनस्वरूप नक्की
करवो.
अहो, मोक्षपुरीमां बिराजमान
अतीन्द्रियज्ञान–आनंदस्वरूप सिद्धभगवंतो, तेमने
ज्ञानद्रष्टिवडे देखीने मोक्षना साधक जीवो नमस्कार
करे छे. पोताना आत्मामां एवो स्वभाव छे तेने
तो स्वानुभूति वडे देखे छे, अने
अनुभूतिसहितना ज्ञान वडे सिद्धभगवाननुं
स्वरूप पण ओळखे छे.