: २६ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
करोडो उपाये सम्यग्ज्ञान प्रगट करो
भेदज्ञान प्रगट करवुं ते ज साचो निर्वाणमहोत्सव छे
(छहढाळा–प्रवचनमांथी अंक ३७३ थी चालु)
मोक्षने माटे वारंवार भेदज्ञाननी प्रेरणा
करतां शास्त्रकारो कहे छे के अहो, आ भेदज्ञान
निरंतर भाववा जेवुं छे, केमके सिद्धिनुं कारण आ
भेदज्ञान ज छे. जे कोई जीवो मोक्ष पामे छे तेओ
भेदज्ञान वडे ज मोक्ष पामे छे. मारो आत्मा तो
ज्ञानस्वरूप छे, ज्ञानस्वरूपथी जुदो जे कोई
शुभाशुभ राग के धन–कुटुंब वगेरे संयोग ते हुं
नथी;–आवा भेदज्ञान वडे आत्माने अनुभवीने
ज बधाय जीवो सिद्ध थया छे. अने आवा
भेदज्ञान वगर कोई जीवो सिद्धि पामता नथी;
आ रीते भेदज्ञान ते ज मुक्तिनो उपाय छे.
भेदज्ञान संवर जिन पायो ते चेतन शिवरूप ग्रहायो।
भेदज्ञान जिनके घट नांही ते जड जीव बंधे जगमांही।।
–आवुं भेदज्ञान छे ते आत्माथी अभिन्न छे, ने ते मोक्षनुं कारण छे, माटे
मुमुक्षुओए भेदज्ञाननी भावना निरंतर कर्तव्य छे, आत्माना ज्ञान वगरना बहारना
जाणपणाने कांई भेदज्ञान कहेता नथी, ते तो अज्ञान अथवा कुज्ञान छे. अरे! पोताना
आत्माने परथी जुदो न पाडे एने ते साचुं ज्ञान कोण कहे? परथी भिन्न पोताना
आत्मानुं ज्ञान ते ज साचुं भेदज्ञान छे. निजस्वरूपमां एकता करीने रागादिथी जुदुं
पड्युं ते ज सुज्ञान छे. आवा भेदज्ञानवंत सुज्ञानी जीव ते ज मुक्तिनो पंथी छे. जेने
आवुं भेदज्ञान नथी, देहमां ने रागमां एकता बुद्धिथी जेनुं ज्ञान अज्ञानरूप परिणमी
रह्युं छे–एवो जीव शुभ–अशुभकर्मोने बांधीने संसारमां ज रखडे छे. माटे कहे छे के हे
भाई! हे आत्महितना अभिलाषी! करोडो उपाये पण तुं आवुं भेदज्ञान कर...तारा
हितनुं आ उत्तम काम सौथी पहेलांं कर.