Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
अहो मित्र! तमे आवुं सुंदर.....परम सुंदर चैतन्यतत्त्व बतावीने मारा उपर
उपकार कर्यो छे. हुं पण ए ज तत्त्वने अंगीकार करुं छुं.
(अहा, चक्रवर्तीपद छोडवुं पण जेनी पासे साव सहेलुं लागे छे–ए चैतन्य
तत्त्वनी सुंदरतानी शी वात?) (‘कल्याण’ ना एक लेखनना आधारे, साभार, सं.)
‘खरेखर आत्मानी अनुभूतिथी ऊंचुं के सुंदर बीजुं कांई नथी. ’
‘न खलु समयसारात् उत्तरं किंचिदस्ति। ’ (समयसार)
* * * * *
‘श्री मुनिराजनी साथे’ (अथवा) ‘श्री माताजीनी साथे’
(भगवान महावीर अढीहजारवर्षीय निर्वाणमहोत्सव प्रसंगे)
–आत्मधर्म–बालविभाग सहर्ष रजु करे छे–
* भाई–बहेनो माटे एक सुंदर ईनामी योजना *
(आ योजनामां उत्साहथी भाग ल्यो ने चैत्र सुद तेरस सुधीमां लेख मोकलो.)
(१) धर्मवत्सल बंधुओ! धारो के महान भाग्यथी तमने कुंदकुंदस्वामी जेवा
धरसेनस्वामी जेवा के समंतभद्रस्वामी जेवा कोई महान मुनिराजना दर्शन थाय, तमे
वैराग्यपूर्वक तेमनी साथे रहेता हो, भक्तिपूर्वक तेमनी सेवा करता हो ने तेमनी साथे
आत्महितनी मजानी चर्चा करता हो–एवा आनंदप्रसंगनुं वर्णन तमारे लखवानुं छे.
तमने मुनिराज साथे रहेतां ने तेमनुं वीतरागी जीवन जोतां केवी भावनाओ जागी?
तमे मुनिराजने शुं–शुं पूछ्युं? ने मुनिराजे तमने शुं–शुं कह्युं? ते तमारे आठ–दश
पानामां लखवानुं छे. श्रेष्ठ लेखो माटे पांच सुंदर ईनामो अपाशे. (आ विभाग
भाईओ माटे.)
(२) धर्मवत्सला बहेनो! तमारे माटे पण जुदी योजना रजु करीए छीए:
धारो के ब्राह्मी–सुंदरी, राजीमती के चंदना जेवा कोई अर्जिकामातानो संग महाभाग्यथी
तमने प्राप्त थाय, तमे वैराग्यपूर्वक तेमनी साथे रहेता हो, तेमनी सेवा करता हो ने
तेमनी साथे आत्महितनी मजानी चर्चा करता हो–आवा आनंदप्रसंगनुं वर्णन तमारे
लखवानुं छे. तमने ते माताजीनी साथे रहेतां ने तेमनुं वैराग्यजीवन जोतां केवी
भावनाओ जागी ? तमे अर्जिका माताजीने शुं–शुं पूछ्युं? ने माताजीए तमने शुं–शुं