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खबर नथी, ने कांई मुडी पण तेणे भेगी करी नथी; हुं कांई आपीश तो लेशे पण नहि;
पण हुं तेनो मोटो भाई छुं, मारे तेनुं ध्यान राखवुं जोईए.–एम विचारी तेणे पोताना
बीजाना हित माटे केवी ऊंची भावना!
हितनुं आवुं ध्यान राखे छे, तो धर्मना संबंधथी जेओ एकबीजाना साधर्मी भाई छे
तेओने तो परस्पर एकबीजाना हित माटे केवी ऊंची भावना होय! पोतानी कोईपण
विभूति पोताना साधर्मीना हितोपयोगमां आवे तेवा प्रसंगे प्रसन्नता थाय छे. अहा,
साधर्मी प्रत्ये ज्यां आवी उत्तम भावना होय त्यां एकबीजाना अनिष्टनी के निंदानी
कल्पनाय कयांथी होय?–एमांय आपणे तो महावीरदेवना वीतरागशासनना
भावनाओ वडे जरूर शोभी ऊठवानो छे.
सो सब महिमा ज्ञानतनी, मुनिनाथ कहै है.
विषय–चाह दव–दाह, जगत–जन अरनि दझावै.
तास उपाय न आन, ज्ञानधनधान बुझावै.
कोई उपाय नथी.