Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 39 of 49

background image
: ३६ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
पाछळ खेतरमां रहेला मोटाभाईने तो कांई खबर नथी. तेना दिलमां पण
एवो विचार आव्यो के मारो नानो भाई भोळो छे, एने हजी संसारनी मायानी
खबर नथी, ने कांई मुडी पण तेणे भेगी करी नथी; हुं कांई आपीश तो लेशे पण नहि;
पण हुं तेनो मोटो भाई छुं, मारे तेनुं ध्यान राखवुं जोईए.–एम विचारी तेणे पोताना
अनाजना ढगलामांथी सोएक मण अनाज नानाभाईना ढगलामां नाखी दीधुं.–एक
बीजाना हित माटे केवी ऊंची भावना!
आ द्रष्टान्तमां वस्तुनी कांई किंमत नथी, बंने भाईओनी अरस–परसनी
भावनानी किंमत छे. अने आ द्रष्टांतनो उद्देश छे के लौकिक भाई–भाई एकबीजाना
हितनुं आवुं ध्यान राखे छे, तो धर्मना संबंधथी जेओ एकबीजाना साधर्मी भाई छे
तेओने तो परस्पर एकबीजाना हित माटे केवी ऊंची भावना होय! पोतानी कोईपण
विभूति पोताना साधर्मीना हितोपयोगमां आवे तेवा प्रसंगे प्रसन्नता थाय छे. अहा,
साधर्मी प्रत्ये ज्यां आवी उत्तम भावना होय त्यां एकबीजाना अनिष्टनी के निंदानी
कल्पनाय कयांथी होय?–एमांय आपणे तो महावीरदेवना वीतरागशासनना
साधर्मीओ! भगवानना मोक्षना २५०० वर्षनो महान उत्सव आपणी उत्तम
भावनाओ वडे जरूर शोभी ऊठवानो छे.
–जय महावीर
(जैन ‘कल्याण’ ना आधारे, साभार)
• • • • •
जे पूरव शिव गये, जाहिं, अरु आगे जैहैं,
सो सब महिमा ज्ञानतनी, मुनिनाथ कहै है.
विषय–चाह दव–दाह, जगत–जन अरनि दझावै.
तास उपाय न आन, ज्ञानधनधान बुझावै.
जेओ मोक्ष गया, जाय छे ने जशे, ते बधाय जीवो
सम्यग्ज्ञानना प्रतापे ज मोक्ष गया छे–जाय छे ने जशे.
अरे, विषयोनी चाहरूप दावानळमां बळी
रहेला जीवोने आ ज्ञानधारा ज बचावनार छे, बीजो
कोई उपाय नथी.