: पोष : २५०१ आत्मधर्म : ३७ :
अध्यात्म–भावनानुं घोलन
(नवीन स्वाध्याय–)
आ वर्ष दरमियान आ विभागमां कोई ने कोई
नवीन साहित्य आपता रहीशुं; तेमां विशेषपणे ज्ञान–
वैराग्यपोषक सुगमशास्त्रोनो मात्र अनुवाद ज आपीशुं.
अहीं ‘पाहुड दोहा’ नामनी कृति रजु थाय छे.
परमात्मप्रकाशक तथा योगसार–दोहरा जेवी ज आ रचना
छे; अपभं्रश भाषानी मूळरचनामां दोहा २२२ छे; रचनार
थी योगीन्दुदेव होवानुं अनुमान छे. तेमां रसमय शैलीथी
विधविध प्रकारे अध्यात्मभावनानुं घोलन कर्युं छे. ते
जिज्ञासुओने गमशे.
१. जेओ परंपराथी आत्मा अने परनो भेद बतावे छे एवा गुरु ज दिनकर छे,
गुरु ज हिमकरण–चंद्र छे, गुरु ज दीपक छे अने ते गुरु ज देव छे.
२. हे वत्स! जे सुख आत्माधीन छे तेनाथी ज तुं संतोष पाम. जे परमां सुखनुं
चिंतन करे छे तेना मननो सोच कदी मटतो नथी.
३. विषयोथी पराङ्मुख थईने पोताना आत्माना ध्यानमां जे सुख होय छे ते
सुख, करोडो, देवीओनी साथे रमण करनारा ईन्द्रने पण मळतुं नथी.
४. विषयसुखोने भोगवतो होवा छतां जे पोताना हृदयमां तेने धारण करतो नथी
(अर्थात् तेमां सुख मानतो नथी) ते अल्पकाळमां शाश्वतसुख पामे छे.
५. विषयसुखोने भोगवता न होवा छतां जे पोताना हृदयमां तेने भोगववानो
भाव धारण करे छे एवा मनुष्यो बिचारां, ‘शालिसिक्ख’ मच्छनी जेम,
नरकमां जई पडे छे.
६. लोको आपत्ति वखते जेम तेम बडबडाट करे छे, ने परथी रंजाई जाय छे,
(–पण तेथी कांई सिद्धि नथी). पोताना मननी शुद्धताथी निश्चलपणे स्थित
थतां जीव परलोकने (–परमात्मदशाने) पामे छे.