Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
७. धंधामां पडेलुं आखुं जगत अज्ञानवश कर्म तो करे छे, परंतु मोक्षना कारणभूत
पोताना आत्मानुं चिंतन एक क्षण पण करतुं नथी.
८. ज्यां सुधी आ आत्मा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप बोधि नथी पामतो, त्यां
सुधी स्त्री–पुत्रादिकमां मोहित थईने दुःख भोगवतो थको ते लाखो योनिओमां
परिभ्रमण करे छे.
९. हे जीव! तने ईष्ट लागतां घर, परिजन अने शरीर ए बधां पदार्थो ताराथी
जुदां छे, तेने तुं पोताना न मान. ए बधां कर्माधीन थयेली जंजाळ छे–एम
योगीओए आगममां बताव्युं छे.
१०. हे जीव! तें मोहने वश थईने, जे दुःख छे तेने सुख मानी लीधुं अने जे सुख छे
तेने दुःख मानी लीधुं; तेथी तुं मोक्ष पाम्यो नहि.
११. धन अने परिजननुं चिंतन करवाथी हे जीव! तुं मोक्ष पामतो नथी; माटे तुं
तारा आत्मानुं ज चिंतन कर. –एम करवाथी तुं महत् सुखने पामीश.
१२. हे जीव! ज्यां दुष्कृत्यनो वास छे एने तुं गृहवास न समज. चोक्कस ए तो
यमनो फेलावेलो फंदो छे, तेमां शंका नथी.
१३. हे मूढ जीव! बहारनुं बधुं कर्मजाळ छे; प्रगट फोतरांने तुं कूट मा. घर–परिजनने
शीघ्र छोडीने निर्मळ शिवपदमां तुं प्रीति कर.
१४. आकाशमां (अर्थात् शुद्ध आत्मामां) जेनो निवास छे तेनो मोह विनष्ट थई
जाय छे, मन मृत्यु पामे छे, श्वासोवास छूटी जाय छे ने ते केवळज्ञानरूपे
परिणमी जाय छे.
१५. सर्प बहारमां काचळीने तो छोडे छे परंतु अंदरना झेरने नथी छोडतो, तेम
अज्ञानी जीव द्रव्यलिंग धारण करीने बाह्यत्याग तो करे छे परंतु अंतरमांथी
विषयभोगनी भावनाने छोडतो नथी.
१६. जे मुनि छोडेला विषयसुखोनी फरीथी अभिलाष करे छे ते मुनि, केशलोचन
अने शरीर–शोषणना कलेशने सहवा छतां संसारमां ज भ्रमण करे छे.
१७. आ विषयसुख तो बे दिवस रहेनारां–क्षणिक छे, पछी तो दुःखनी ज परिपाटी
छे. माटे हे जीव! तुं तारा आत्माने भूलीने पोताना ज खभा उपर कूहाडानो
प्रहार न कर.
१८. जेम दुर्जन प्रत्ये करेला उपकार नकामा जाय छे तेम, हे जीव! तुं आ शरीरने
नवरावीने तेलमर्दन कर