Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 42 of 49

background image
: पोष : २५०१ आत्मधर्म : ३९ :
अने तेने सुमिष्ट आहार दे–ते बधुंय निरर्थक जवानुं छे.–अर्थात् आ शरीर
तारा उपर कांई उपकार करवानुं नथी, माटे तुं एनी ममता छोड.
१९. अस्थिर मलिन अने निर्गुण एवी काया वडे जो स्थिर, निर्मळ अने सारभूत
गुणवाळी क्रिया वृद्धिगत थती होय तो ते क्रिया केम न करीए? (अर्थात् आ
शरीर विनाशी, मलिन अने गुण वगरनुं छे, तेनी ममता छोडीने, तेमां रहेला
अविनाशी, पवित्र अने सारभूत गुणसहित एवा आत्मानी भावना जरूर
कर्तव्य छे.)
२०. विष भलुं, विषधर–सर्प पण भलो, अग्नि के वनवासनुं सेवन पण भलुं,–परंतु
जिनधर्मथी विमुख एवा मिथ्यात्वीओनो सहवास भलो नथी.
२१. जे जीव मूळगुणोनुं उन्मूलन करीने उत्तरगुणोमां संलग्न रहे छे ते, डाळीने चुकी
गयेला वानरनी जेम नीचे पडीने भग्न थाय छे. (मूळगुणथी भ्रष्ट जीव
साधुपणाथी भ्रष्ट थाय छे.)
२२ जो तें आत्माने नित्य अने केवळज्ञानस्वभावी जाणी लीधो छे, तोपछी हे
वत्स! शरीर उपर तुं अनुराग केम करे छे?
२३. जिनवचननी अप्राप्तिथी, चोराशी लाख योनि मध्ये एवो कोई प्रदेश बाकी नथी
रह्यो–के ज्यां जीवे परिभ्रमण न कर्युं होय.
२४. जेना चित्तमां ज्ञाननुं विस्फुरण थयुं नथी, अने जे कर्मना हेतुने ज (पुण्य–
पापने ज) करे छे, ते मुनि सकल शास्त्रोने जाणतो होय तोपण सुखने नथी
पामतो.
२५. बोधिथी विवर्जित एवा हे जीव! तुं तत्त्वने विपरीत माने छे,–केमके कर्मथी
रचायेला भावोने तुं आत्माना माने छे.
२६. हुं गोरो छुं, हुं शामळो छुं, हुं विभिन्न वर्णवाळो छुं. हुं दूबळो छुं के हुं स्थूळ छुं–
एम हे जीव! तुं न मान.
२७. तुं नथी तो पंडित, के नथी मूर्ख; नथी ईश्वर के नथी दास; नथी गुरु के नथी
कोईनो शिष्य;–ए सर्वे विशेषता तो कर्मजनित छे. (स्वभावथी बधा जीवो
ज्ञानस्वरूपे सरखा छे.)
२८. वळी हे जीव! नथी तो तुं कोईनुं कारण, के नथी कार्य; नथी तुं स्वामी के नथी
सेवक; नथी शूरो के नथी कायर, अने नथी उत्तम के नथी नीच.
२९. पुण्य के पाप, काळ के आकाश,