Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
शेनाथी जीवे छे?–उपयोगथी जीवे छे. उपयोग ए ज
जीवनुं साचुं जीवन छे. सर्वज्ञदेवनो साचो सन्देश ए छे के
उपयोग ए ज जीवनुं जीवन छे. उपयोग वडे ज तमे जीवंत छो.
तमारे जीववा माटे (जीवपणे रहेवा माटे) उपयोग सिवाय
अन्य कोई वस्तुनी जरूर नथी. माटे साचुं स्वाधीन अने सुखी
जीवन जीववुं होय तो तमारा उपयोगस्वरूप आत्माने ओळखो;
ने देहादि वडे जीववानी बुद्धि छोडो. देह अने उपयोग ए बंने
तद्न भिन्न वस्तु छे. एवी भिन्नता जाणो ने शुद्ध उपयोगरूपे
परिणमीने आनंदमय जीवन जीवो.
भगवान आवुं आनंदमय जीवन जीवे छे; ने
जगतना जीवोने एवुं जीवन जीववानो उपदेश दीधो छे.
आ छे महावीरनो सन्देश!
अमारो आफ्रिकानो पत्र–
आफ्रिकाथी नाईरोबी मुमुक्षुमंडळना चेरमेन लखे छे के
“आत्मधर्म वांची प्रमोदभावे लखुं छुं. हुं चोवीस वर्ष थया
आत्मधर्म वांचुं छुं अने नवो अंक क्यारे हाथमां आवे तेनी राह
जोउं छुं. अमारा जेवा मुमुक्षुओने आवुं अपूर्व आत्मधर्म कोई
महा पुण्यना योगे मळ्‌युं छे–नहितर भारत अने भारत बहार
वसता मुमुक्षुओने साचो जैनमार्ग कोण बतावत? आ तो
वर्तमानकाळे गुरुदेवनो योग मळ्‌यो ने तत्त्वज्ञाननी वात मळी.
आत्मधर्मना संपादन द्वारा तमे खरेखर प्रशंसनीय अने
जैनधर्मनी खुबज प्रभावना तथा उल्लासपूर्वक सेवा करो छो.
श्री गुरुदेवना सान्निध्यमां रहीने जे अपूर्व लाभ लीधो तेथी तमे
भाग्यशाळी छो...ने आत्महित साधी रह्या छो. आत्मधर्म द्वारा
जैनसमाजने सत् तत्त्वज्ञान पीरस्युं छे. आपने धन्यवाद पाठवुं
छुं. अमे आफ्रिकाथी छ वखत गुरुदेवना दर्शन करवा तथा
तेमना श्री मुखेथी नीकळती साक्षात् भगवान महावीरनी वाणी
सांभळवा भारत आव्या छीए. गुरुदेवना प्रतापे अपूर्व लाभ
मळ्‌यो छे; नहितर आटले दूर देशमां रहीने आवो लाभ मळवो
दुर्लभ छे.’’ नाईरोबी. (Po. Box 43129)
–ली. जेठालाल देवराज शाह,