
पोतानो अखंड सामान्यज्ञानस्वभाव व्यापेलो देखाय छे.
ते पोतानी पर्यायथी बहार एवा परद्रव्यने क्यांथी जाणे ? जे आंधळो पोताना
सर्वज्ञस्वभावी आत्माने ईन्द्रियातीत मतिश्रुतज्ञानवडे प्रत्यक्ष करे छे, पछी तेनी
विशेष भावनारूप एकाग्रता वडे शुद्धोपयोगी थई राग–द्वेषनो क्षय करी,
केवळज्ञानरूप परिणमे छे. ते केवळज्ञान संपूर्ण ज्ञान–विशेषोवाळुं परिपूर्ण छे, ने
केवळज्ञानी प्रभु एवा अनंत विशेषोरूपे परिणमेला सर्वज्ञस्वभावी आत्माने
केवळज्ञानवडे साक्षात्–प्रत्यक्ष जाणे छे.
‘सर्वज्ञ महावीर’ नी साची ओळखाण छे. एवी ओळखाण करनार जीव
आत्माने जाणीने महावीरना मार्गे मोक्षमां जाय छे.
एकला–एकला पण करी शको छो; ते काम करती वखते
शांति थाय छे; ते काम एवुं मजानुं छे के जे करवाथी
आपणो थाक ऊतरी जाय छे; मुमुक्षु एकलो होय त्यारे आ
काम तेनुं खास साथीदार बनी जाय छे ने तेने आनंद
पमाडे छे; आ काम सदाय लाभकारक ज छे, तेनाथी कदी
नुकशान थतुं नथी. ते काम सौए वखाण्युं छे ने लगभग
दरेक मुमुक्षु ते सारूं काम दररोज करतो होय छे; ते काम एवुं
निर्दोष छे के मुनिओ पण ते काम करे छे; दिवसे तेमज रात्रे
पण ते थई शके छे. तेनो छेल्लो अक्षर ‘...य’ छे. तमे पोते