: महा : २५०१ आत्मधर्म : ७ :
बपोरे दोढ वागे पू. गुरुदेव सहेसावन तरफ पधार्या....यात्रिकोनी वणझार पण
गुरुदेवनी साथे ज चाली....वच्चे “गोमुखीगंगा” ना स्थाने एक गोखमां २४
तीर्थंकरोना चरणपादूका छे. त्यां दर्शन करीने सौ सहेसावनमां आव्या...सहेसावन
एटले भगवान नेमिनाथना वैराग्यनुं धाम! भगवान संसार छोडीने अहीं मुनि
थया...अहीं आत्मध्यान कर्युं...चोथुं अने पांचमुं ज्ञान पण भगवाने अहींज प्रगट कर्युं.
छठ्ठुं–सातमुं–आठमुं–नवमुं–दशमुं तथा बार–तेर–चौदमुं गुणस्थान भगवानने आ
गीरनारभूमिमां थयुं. दिव्यध्वनिवडे जगतने मोक्षनो मार्ग भगवाने अहींथी बताव्यो.
धन्य आ भूमि! धन्य अहींना संतो!....सहेसावननुं वातावरण ए बधी वातो ताजी
करावे छे. गुरुदेव सहेसावनमां पधारतां प्रसन्न थया...गुरुदेव साथे आवा सहेसावननी
–तीर्थंकरना चारित्रधामनी ने केवळज्ञान धामनी–यात्रानो धन्य अवसर मळतां
भक्तोने पण घणो आनंद थयो. गुरुदेव साथे यात्रानो लाभ लेवा भिन्न भिन्न
प्रांतमांथी आवेला सवा हजार जेटला यात्रिकोनो मेळो अहीं भेगो थयो हतो....ने
सहेसावनमां अपार भीड जामी हती–केमके सौने एवी धून के गुरुदेव साथे यात्रानो
महान लाभ लईए! खरुं ज छे आवा महापुरुषो साथे आवा महान तीर्थोनी यात्रानो
धन्य अवसर जीवननी कोईक सोनेरी पळेज मळे छे...ने एवी यात्रा जीवननुं एक
सोनेरी स्मरण बनी जाय छे. भीड तो एवी जामी हती के,–जेम भगवाननी
वैराग्यपरिणतिमां संसारने प्रवेशवानो अवकाश ज न हतो तेम आ वैराग्यवनमां
यात्रिकोनी भीड वच्चे बीजाना प्रवेशनो अवकाश न हतो.
अहीं भक्ति करावतां करावतां वच्चे गुरुदेवे प्रमोदथी कह्युं के ‘ईन्द्रो अने
ईन्द्राणीओ अहीं भगवाननी भक्ति करवा स्वर्गेथी ऊतर्या हता; भगवानना कल्याणक
ऊजववा माटे अहीं आव्या हता,; ने समवसरण अहीं रचाया हता...तेमां भगवान
उपदेश देता हता..कृष्ण अने बळभद्र अहीं आवीने नेमप्रभुना चरणे शीर झूकावता
हता ने भक्तिथी उपदेश सांभळता हता. अहा, देवाधिदेव तीर्थंकरना अचिंत्य महिमानी
शी वात!–एनां स्मरणो ताजा करवा अहीं आव्या छीए...भगवाननी भूमिमां आवतां
नवां अने ताजा स्मरणो जागे छे, ते हेतुए आ जात्रा छे. भगवाननुं आत्मद्रव्य
मांगळिक हतुं. भगवान नेमिनाथ अहीं बिराजता तेने तो जो के हजारो वर्ष थई गया,
परंतु आपणो भाव ने आपणुं ज्ञान तो वर्तमानमां छे ने! ” नेमप्रभुनी भुमिमां
गुरुदेवना आवा भक्ति अने प्रमोदभरेला उद्गारो सांभळतां यात्रिको पोतानो घणो
हर्ष व्यक्त करीने यात्रानो अनेरो लहावो लेता हता.
[यात्राना विशेष लहावा माटे जुओ पानुं –१६]