Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 26 of 47

background image
: महा : २५०१ आत्मधर्म : २३ :
अमृतनो अनुभव थयो. आनुं नाम अनेकान्त! आ तीर्थंकरोनुं शासन! ने आ ज
सर्वज्ञदेवनो ईष्ट उपदेश.
जैनशासन अनुसार अनेकांतमय वस्तुस्वरूपना एक पण बोलनो निर्णय करे
तो एकांतवादरूप मोहनो नाश थईने अमृत झर्या वगर रहे नहि.
अनंत गुण वाळी वस्तु छे; तेमांथी एक पण बोलनो साचो निश्चय करे त्यां
अनंतगुण तेमां समाई जाय छे. अनंतगुणमांथी एक गुण जुदो पाडीने अनुभवमां
आवतो नथी. कोईपण गुण द्वारा अभेदरूप वस्तुने लक्षगत करतां तेना अतीन्द्रिय
आनंदनो स्वाद आवे छे, त्यां मिथ्यात्वनुं झेर ऊतरी जाय छे.
आत्मा स्यात् अस्तिरूप छे; ते ‘अस्तित्व’ मां अनंतगुणोनुं स्वरूप समायेलुं
छे. द्रव्य–गुण–पर्याय, उत्पाद–व्यय–ध्रुव, ज्ञान–आनंद वगेरे बधुंय ‘हुं स्वरूपे अस्ति
छुं. ’ एमां आवी जाय छे; पोताना स्वभावनो कोई अंश पोताना अस्तित्वथी बहार
रही जतो नथी; ने पर चीजनो कोई अंश पोताना अस्तित्वमां आवी
जतो नथी.
‘हुं आत्मा छुं’–एम अस्तिना स्वीकारपूर्वक सप्तभंगीना बाकीना भंगो
समजाय छे. आत्मा ‘नथी’–एम कहेतां पण नास्तित्व धर्मवाळा आत्मानो स्वीकार
आवी ज जाय छे. एक वस्तु अमुक जग्याए के अमुक स्वरूपे नथी एम तेनुं
‘नास्तित्व’ कहेतां ज ते वस्तु बीजी जग्याए के बीजा स्वरूपे विद्यमान छे–एम तेना
अस्तित्वनो स्वीकार पण आवी ज जाय छे. जेणे चेतनस्वरूपे आत्मा जोयो होय ते
तेनो निषेध करी शके के ‘आ शरीर छे ते आत्मा नथी. ’ आ रीते स्व–रूपे अस्तिना
स्वीकारपूर्वक ज पररूपे तेनी नास्ति कही शकाय छे.
अहो! जैनशासननी अनेकान्त–शैलि! ते वस्तुना स्वरूपने अत्यंत स्पष्ट
समजावे छे. नवतत्त्वमांथी एक तत्त्वनो साचो निर्णय करवा जाय त्यां बधाय तत्त्वनो
स्वीकार तेमां आवी ज जाय छे. जडने जडरूपे जाणवा जाय त्यां चेतनस्वरूप आत्मा
तेनाथी जुदो छे–एवुं ज्ञान पण तेमां भेगुं आवी ज जाय छे. चेतनना ज्ञान वगर
जडनुं ज्ञान पण साचुं थाय नहि. एक ‘सत्’ आत्मामां द्रव्य–गुण–पर्याय बधुंय समाई
जाय छे, तेमज परथी नास्तित्वरूप धर्म पण तेमां ज समाई जाय छे.
अहो, साधकना अनेकांतमय श्रुतज्ञाननी कोई बलिहारी छे के वस्तुमां रहेला
अनंतधर्मोने बधाने ते एक साथे स्वीकारीने वस्तुना स्वरूपनो निर्णय करी ल्ये छे.