Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २५०१ आत्मधर्म : २५ :
त्रणे काळे मोक्षनो उपाय भेदज्ञान छे,
तेना वडे ज विषयोनो दाह बुझाय छे.
[छहढाळा–प्रवचनमांथी: अंक ३७५ थी चालु]
जीवने सम्यग्ज्ञान ज परम सुखनुं कारण छे, जन्म–मरणनो रोग मटाडनार ते
अमृत छे. तेना वगर संसारमां बीजुं कोई शरणरूप नथी, माटे करोडो उपाय वडे पण
आवुं सम्यग्ज्ञान प्रगट करो. त्रणे काळे मोक्षनो उपाय सम्यग्ज्ञान ज छे–एम कहीने ते
सम्यग्ज्ञाननो विशेष महिमा समजावे छे–
जे पूरव शिव गये, जाहिं, अरु आगे जैहैं
सो सब महिमा ज्ञानतनी मुनिनाथ कहैं हैं।।
विषयचाह दव–दाह जगतजन अरणि दझावे
तास उपाय न आन ज्ञानघनधान बुझावे ।।।।
जे अनंता जीवो पूर्वे मोक्षमां गया छे, अत्यारे जाय छे अने भविष्यमां जशे–ते
बधो सम्यग्ज्ञाननो ज महिमा छे–एम मुनिनाथ कहे छे. जेम आग अरणीना जंगलने
बाळ नांखे तेम विषयोनी चाहनारूपी भयंकर दावानळ संसारी जीवोने बाळी रह्यो छे,
तेने आ ज्ञानरूपी मेघधारा ज बुझावीने शांत करे छे; ज्ञान सिवाय बीजो कोई तेनो
उपाय नथी.
आत्माना साचा ज्ञानवडे चैतन्यसुखनो अनुभव ज्यां सुधी न थाय त्यांसुधी
शुभ के अशुभ परविषयोमां सुखबुद्धि रह्या ज करे एटले विषयोनी चाहनानी
बळतरामां जीव बळ्‌या ज करे, दुःखी थया ज करे. पण स्व–परनी भिन्नता जाणीने
ज्यां आत्मानुं सम्यक्ज्ञान थयुं त्यां चैतन्यसमुद्रनी अगाधशांति पोतामां देखी,
विषयोथी पार सुख पोतामां देख्युं. ते अपूर्व चैतन्यरसनी धारा वडे विषयोनी
चाह छूटी जाय छे; सम्यग्ज्ञान थतां आत्मा सिवाय बीजा कोई विषयोमां सुखबुद्धि
रहेती नथी.