: २६ : आत्मधर्म : महा : २५०१
ज्ञानकला जिसके घट जागी, ते जगमांहि सहज वैरागी;
ज्ञानी मगन विषयसुखमांही, यह विपरीत, संभवे नांही.
त्रणेकाळे भेदज्ञान वडे चैतन्यसुखनो अनुभव करी करीने ज जीवो मोक्षमां जाय
छे. परथी भिन्न चैतन्यतत्त्वनी लो लगाडीने जेणे सम्यक् ज्ञानज्योत प्रगट करी ते ज
जीवो मोक्षसुख पाम्या, पामे छे ने पामशे. विदेहक्षेत्रमां के भरतमां चोथाकाळे के
पंचमकाळे जे कोई जीवो मोक्ष पाम्या, पामे छे ने पामशे तेओ ज्ञानना सेवनवडे मोक्ष
पाम्या छे. पामे छे ने पामशे. मुनिनाथ श्री कुंदकुंदस्वामी कहे छे के–
अधिक शुं कहेवुं अरे! सिध्या अने जे सिद्धशे,
वळी सिद्धता सौ नरवरो, महिमा बधो सम्यक्त्वनो.
वळी अमृतचन्द्रस्वामी पण कहे छे के–
सिद्धो थया जे जीव ते सौ जाणजो भेदज्ञानथी,
बंध्या अरे! जे जीव ते सौ भेदज्ञान–अभावथी.
सम्यग्दर्शन कहो, भेदज्ञान कहो के ज्ञाननी आराधना कहो, ते ज मोक्षनो उपाय
छे. मुनिओना नाथ आम कहे छे के ज्ञाननी अनुभूतिरूपे परिणमे ते ज मोक्षनो हेतु छे.
–आमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणेय समाई जाय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ए
त्रणेय ज्ञानमय छे, राग वगरनां छे, तेमां रागनो कोई अंश समातो नथी. रागथी
खसीने चैतन्यभावमां वसवुं ते ज मोक्षनो पंथ छे.
संतनी वात टूंकी ने टच; स्वमां वस....परथी खस.
आखोय मोक्षमार्ग ज्ञानमय छे. ज्ञाननी श्रद्धा, ज्ञाननुं ज्ञान, ने ज्ञाननुं
आचरण, ए रीते ज्ञाननी अनुभूतिमां मोक्षमार्ग समाय छे. ज्ञानना अनुभवथी जुदुं
कोई मोक्षनुं कारण नथी.
अहो, ज्ञाननो महिमा तो जुओ! ज्ञान एटले आखो आत्मा; तेने ओळखतां
सम्यग्ज्ञान थयुं ने मोक्षमार्ग खुल्यो; मुनिओए तेने मोक्षना मार्गमां स्वीकार्यो.
मुनिओनो नाथ एवा अरिहंत भगवंतोए, तेमज गणधरदेव वगेरे मोटामोटा
मुनिवरोए भेदज्ञानने ज मोक्षनुं कारण जाणीने तेनी प्रशंसा करी छे. आवा मोक्षमार्गने
ओळखीने जे भेदज्ञान प्रगट करे तेणे ज अरिहंतोनी अने मुनिओनी आज्ञा स्वीकारी
छे जे आनाथी विरुद्ध बीजी रीते मोक्षमार्ग माने, शरीरनी क्रियाने के शुभरागने मोक्षनुं
कारण माने, तेणे