: ३२ : आत्मधर्म : महा : २५०१
पण मारो आत्मा एकलो ज विशुद्धचेतनानो कर्ता थईने ते–रूपे परिणमतो थको, अने
अतीन्द्रियसुखरूप फळने भोगवतो थको एकलो ज मोक्षने साधी रह्यो छे. अत्यारे
मोक्षमार्गमां पण हुं एकलो ज छुं, बीजुं कोई मारुं नथी.
–आम पोते पोताना एकत्वने ज भावतो मुमुक्षुजीव, छूटा परमाणुनी माफक,
पोतानी एकत्वभावनामां ज वर्ततो थको परद्रव्य साथे जराय संपृक्त थतो नथी एटले
के तेने कर्मनो संग थतो नथी; तेनी पर्यायो शुद्ध थईने पोतामां ज अभेद थई होवाथी,
पर्यायोवडे ते खंडित थतो नथी; आ रीते ते एकलो सुविशुद्ध होय छे.–आवी दशा
प्रशंसनीय छे; ते ज मोक्षनुं साधन छे.
जेणे परद्रव्योथी भिन्नताना भेदज्ञान द्वारा पोताना आत्माने जुदो तारवी
लीधो छे, अने पोताना समस्त विशेष गुण–पर्यायोना समूहने पोतामां ज समावीने
एकत्व प्राप्त कर्युं छे, ए रीते एकत्वभावनामां परिणमेला आ मुमुक्षुजीवे शुद्धनयवडे
मोहनुं सामर्थ्य नष्ट करी नांख्युं छे, ने उत्कृष्ट विवेक द्वारा (शुद्धोपयोग द्वारा) परथी
भिन्न पोताना शुद्ध तत्त्वने अनुभवमां लीधुं छे.–कुंदकुंदस्वामी कहे छे के अहो, आवो
जीव धन्य छे.....प्रशंसनीय छे.
धरतीकंप सम्यग्द्रर्शन
• हिमालयमां मोटी तीराड पडी. • मोहपर्वतमां मोटी तीराड पडी.
• नदीए वहेण बदल्युं. • परिणतिए प्रवाह बदल्यो.
• नवीन तळावनुं सर्जन थयुं. • शांतरसना तळावनुं सर्जन थयुं.
• केटलाय गामो नाश पाम्या. • केटलीये कर्मप्रकृति नाश पामी.
हमणां समाचारपत्रोमां उथलपाथलना मोटा समाचार आव्या हता के ता. १९
जान्युआरीए हिमालय प्रदेशमां धरतीकंप थतां नदीनुं वहेण बदलाई गयुं; नवुं
तळाव रचायुं; हिमालय पहाडमां हजारो फूट लांबी तीराड पडी; केटलाय गामो
जमीनदोस्त थया.