: महा : २५०१ आत्मधर्म : ५ :
कोण कहे छे–वरसाद ओछो छे? अरे, आखा गीरनारने तो तमे
जुओ!–आखोय गीरनार वैराग्यना धोधमार वरसादथी भींजायेलो छे. ए
वर्षाना वैराग्यरसनुं पान करतां आत्माने जे तृप्ति थाय छे–तेवी तृप्ति हजारो
इंच पाणीना वरसाद वडे पण थई शकती नथी. नेमनाथ प्रभुए केवळज्ञान–
गगनमांथी चैतन्यनुं धोधमार अमृत वारंवार वरसाव्युं तेनाथी भींजायेलो
वैराग्यरसबोळ गीरनारपर्वत आजेय आपणने ज्ञानवैराग्यनुं पान करावे
छे...आवो....गीरनारमां आवो...ने शांतिथी धराई–धराईने एनुं पान
करो...
पछी तो श्री धरसेनस्वामी अने कुंदकुंदस्वामी जेवा संतोए पण ए
मधुर चैतन्य प्रवाहमां प्राण पूरीने एने वहेतो राख्यो छे. ने आजे पण
आपणने एनो स्वाद श्रीगुरु प्रतापे मळी रह्यो छे. तेनो नमूनो आप पण
चाखो...(ब्र. ह. जैन)
[गीरनारधामना प्रवचनोनी प्रसादी]
वीर सं. २४८७ मां (आजथी १४ वर्ष पहेलांं) गीरनारतीर्थनी यात्रा वखते
माह सुद दसमे मंगल प्रवचनमां नेमिनाथ भगवानने याद करतां कह्युं–
आ गीरनार.....भगवान नेमिनाथनी मंगल भूमि छे. चैतन्यना आनंदनुं वेदन
अने आत्मभान तो भगवानने पहेलेथी हतुं...विवाह माटे तेओ जान लईने अहीं
आवेलां, त्यां वैराग्य पामीने सहेसावनमां दीक्षा लीधी. दीक्षा लईने मुनिदशामां
भगवान अहीं विचर्या....अने आत्माना ध्यानवडे चैतन्यनो पूर्ण आनंद प्रगट कर्यो....
केवळज्ञान पण भगवान अहीं ज पाम्या...ने मोक्षदशा पण अहीं ज पाम्या....
भगवाननो आत्मा मंगळ छे, भगवाननी ते दशाओ मंगळ छे, ने आ गीरनार पण
मंगळ छे; तेनी यात्रा करवा, ने ते दशानां स्मरणो ताजा करवा आव्या छीए. भगवान
जे सहेसावनमां दीक्षा लईने