: फागण : २५०१ आत्मधर्म : २३ :
हाथ जोडकर कहती हूँ, ये अनहोनी नहिं होने की
चाहे सौं–सौं कसमें दो, या घडी बताओ सोनेकी।।
किन्तु साथ नहिं गयी किसीसे, पूछो ज्ञानी–ध्यानीको
हाय! कहो अब कैसे छोडूँ, अपनी रीत पुरानीको?।।१६
चेतन–हे गुरुदेव! दया करके, इस कायाको समझा दीजे
साथ हमारे इसे भेजकर, मेरा काम बना दीजे।
पर–उपकारी दुखहारी तुम, कुरुणानिधी कहाते हो
छोटेसे छोटासा झगडा, नाहक नाथ! बढाते हो।।
जरा दया कर सुनलो स्वामी, मेरी करुण कहानीको।
हाय! कहो अब कैसे छोडूँ, अपनी प्रीत पुरानीको?।।१७
काया–हे गुरुदेव! दया करके इस चेतनको समझा दीजे
यों शरीरका सत्स्वरूप इस चेतनको बतला दीजे।
दीननाथ! तुमने ही तो मुझसे सब नाता तोडा है
शिव–सुंदरीके अटल प्रेमसे तुमने नाता जोडा है।।
इसीलिए ‘छोटा’ कहता है, सुनो जरा जिनवाणी को।
हाय! कहो अब कैसे छोडूँ, अपनी रीत पुरानीको?।।१८
छुं के परभवमां हुं तारी साथे आवुं–एवी अशक््य वात कदी बनवानी नथी;–तुं भले चाहे सेंकडो सोगंद दे
के सोनानी घडियाळ दे.–परंतु कदी कोईनी साथे परभवमां गई नथी. तुं ज्ञानी ध्यानीने पूछी जो–के हुं
कोईनी साथे गई छुं? नथी गई; तो मारी ए पुराणी रीतने हवे हुं केम छोडुं? (१६)
छेवटे चेतन प्रार्थना करे छे–हे गुरुदेव! दया करीने तमे आ कायाने समजावो, अने तेने मारी
साथे मोकलीने मारुं काम करी आपो. तमे तो करुणानिधि छो, परोपकारी छो ने दुःख हरनारा छो; तो
अमारो आ नानकडो झगडो नाहकनो शा माटे लंबावो छो! जराक दया करीने मारी करुणकथा सांभळो.
अरेरे! आखी जींदगी जे कायानी प्रीतिमां वीतावी ते कायानी जुनी प्रीतिने हवे मरवा टाणे हुं केम छोडुं?
छेवटे काया पण कहे छे के हे गुरुदेव! आप दया करीने आ चेतनने समजावो....अने आ शरीरनुं
साचुं स्वरूप तेने बतावो....हे दीनानाथ! तमे पोते पण देहथी आत्मानी भिन्नता जाणीने, मारी साथेनो
बधो संबंध तोडयो छे ने अटल प्रेमपूर्वक मोक्षसुंदरी साथे संबंध जोड्यो छे. अरे, छोटा–कवि पण ए ज
वात कहे छे, अने जराक जिनवाणी सांभळी जुओ–तो ते पण ए ज वात कहे छे के देह अने आत्मा
भिन्न छे. तो पछी हवे हुं मारी आ अनादि रीतने केम छोडुं?–माटे हे चेतनभाई! तमे समजो...ने हवे
मारो मोह छोडीने एकला अशरीरीपणे मोक्षपुरीमां जाओ....तो तमे सुखी थशो. (१८)