छीए; वच्चे अनेक नगरीओ देखाय छे पण ते नगरीथी अत्यंत अलिप्त छीए. आखी
नगरीने जोवा छतां तेनाथी घणा ऊंचे, निजस्थाने ज गमन करीए छीए.
क््यांय मोह नथी थतो,–निर्लेपपणे दुनियाने देखी रह्या छीए. सर्वत्र जाणे सुंदरता ज
व्यापेली छे. अहा, चैतन्य पोते पोतानी सुंदरतामां होय त्यारे तेने माटे आखुंय विश्व
सुंदर ज छे, एने माटे असुंदर जगतमां कांई नथी.
पण निरालंबी. अहो! चैतन्यनो निरालंबी मार्ग! केटलो सुंदर छे! केवो प्रशस्त छे! ने
ईष्ट–स्थाने केवी झडपथी पहोंचाडे छे! अहा! आवा मार्गे जतां निजध्याननी शांत
उर्मिओ जागे छे!
जगतनी कोई प्रवृत्ति नथी. मार्गमां कोई रूकावट नथी.
पूरेपूरुं चेकींग करीने, बराबर परीक्षा करीने, मार्गनी निःशंकता प्राप्त करी; ने पछी
निःशंकताना बळे मार्ग शरू कर्यो...ज्ञानगगनमां ऊडया! अहा, मार्ग शरू थया पहेलांं
विमानमां केवो बफारो थतो हतो! सौ केवा अकळाता हता! ने परसेवे रेबझेब थईने
नीतरता हता! पण ज्यां मार्गमां प्रवास शरू थयो त्यां अकळामण मटी गई, ने केवी
मीठी शांति ने ठंडक आववा मांडी! तेम चैतन्यमार्गमां जीव ज्यां सुधी चालवा न मांडे
त्यां सुधी ज तेने अकळामण ने मूंझवण थाय छे; पण ज्यां मार्गमां चालवा मांडे छे–
परिणति अंतरमां वळे छे, त्यां तो बधी अकळामण मूंझवण के कषायनो बफारो दूर
थईने परम शीतळ–शांति वेदनमां आवे छे. मार्गमां थाक लागतो नथी.