Atmadharma magazine - Ank 377
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २५०१ आत्मधर्म : २७ :
अढीसो–त्रणसो माईलनी झडपथी चालतुं होवा छतां, विमान पोते पोतामां
होवाथी जाणे स्थिर होय तेवुं लागे छे; तेम परिणति निरंतर परिणमती होवा छतां
पोते आत्माना निजस्वरूपमां स्थिर होवाथी, आत्मा स्थिर–शांत अनुभवाय छे, तेमां
परिणमनजन्य कोई आकुळता नथी.
दुनियाथी दूर–दूर जुदा होवाने कारणे दुनियाने जोवानुं सहेलुं पडे छे, घणी
दुनिया एकसाथे देखाय छे, ने आवडी मोटी दुनिया ज्ञान पासे तो साव नानकडी लागे
छे, ज्ञाननी महान विशाळता देखाय छे. तेम आत्मा परभावोथी जुदो पडीने तेनाथी
दूर थयो त्यां हवे परभावने के जगतना ज्ञेयोने जाणवानुं सहेलुं पडे छे, घणुं जाणवा
छतां राग–द्वेष थता नथी पण ऊल्टी वीतरागी शांति वधती जाय छे. घणा ज्ञेयो, सूक्ष्म
भावो बधुं एकसाथे देखाय छे. आटला बधा ज्ञेयोने जाणवा छतां ज्ञान पासे तो ते
अत्यंत अल्प लागे छे, ने ज्ञाननी विशाळता घणी–घणी महान छे,–ते महानता
पोतामां ज समाय छे. वाह रे वाह आत्मदेव!
नीरालंबी प्रवास करतां–करतां याद आवे छे सिद्ध भगवंतो! याद आवे छे
गगनविहारी अरिहंत भगवंतो! याद आवे छे थोडेक ऊंचे बिराजमान आकाशगामी
कुंदकुंददेव! अने तेमनुं विदेहगमन!
आत्मा मोटो छे, दुनिया नानी छे. नीचे तो बस, दरियो ज दरियो छे! नीचे
दरियो, छतां तेना उपर ऊडीने ईष्ट–स्थाने जई रह्या छीए. तेम भवसमुद्रनो मोटो
दरियो, छतां भेदज्ञानरूपी एरोप्लेनमां बेसीने तेने तरी रह्या छीए. एरोप्लेनमां
बेसवुं ते जीवोने नवीन लागे छे–पण आ भेदज्ञानरूपी निरालंबी प्लेनमां बेसवानी जे
आनंदमय अपूर्वता छे तेनो स्वाद तो कोई अभूतपूर्व, आश्चर्यकारी छे. संतोना प्रतापे
अमने ए नवीनता प्राप्त थई गई छे जेम एरोप्लेननी मुसाफरी पण जींदगीमां
संतोना ज प्रतापे थई छे, तेम चैतन्यगगनमां प्रवास पण अहो! संतोना प्रतापे थयो
छे.
निरालंबी प्रवासमां मारा उपयोगने पण निरालंबी करुं छुं. चिदानंदना
ध्यानरूप मुक्तिमार्ग नीरालंबी छे, तेनो सूचक निरालंबी गगनप्रवास चाली रह्यो छे.
अहो, जिनेन्द्रो! आप याद आवो छो. आप तो सदाय आकाशमां ज चालनारा
छो. सदाय नीरालंबी उन्नतगामी ज छो. आपने पृथ्वीनुं आलंबन नथी.
प्रभो! हुं पण आपना ज नीरालंबी मार्गे चाली रह्यो छुं. अन्यना अवलंबन