पोते आत्माना निजस्वरूपमां स्थिर होवाथी, आत्मा स्थिर–शांत अनुभवाय छे, तेमां
परिणमनजन्य कोई आकुळता नथी.
छे, ज्ञाननी महान विशाळता देखाय छे. तेम आत्मा परभावोथी जुदो पडीने तेनाथी
दूर थयो त्यां हवे परभावने के जगतना ज्ञेयोने जाणवानुं सहेलुं पडे छे, घणुं जाणवा
छतां राग–द्वेष थता नथी पण ऊल्टी वीतरागी शांति वधती जाय छे. घणा ज्ञेयो, सूक्ष्म
भावो बधुं एकसाथे देखाय छे. आटला बधा ज्ञेयोने जाणवा छतां ज्ञान पासे तो ते
अत्यंत अल्प लागे छे, ने ज्ञाननी विशाळता घणी–घणी महान छे,–ते महानता
पोतामां ज समाय छे. वाह रे वाह आत्मदेव!
कुंदकुंददेव! अने तेमनुं विदेहगमन!
दरियो, छतां भेदज्ञानरूपी एरोप्लेनमां बेसीने तेने तरी रह्या छीए. एरोप्लेनमां
बेसवुं ते जीवोने नवीन लागे छे–पण आ भेदज्ञानरूपी निरालंबी प्लेनमां बेसवानी जे
आनंदमय अपूर्वता छे तेनो स्वाद तो कोई अभूतपूर्व, आश्चर्यकारी छे. संतोना प्रतापे
अमने ए नवीनता प्राप्त थई गई छे जेम एरोप्लेननी मुसाफरी पण जींदगीमां
संतोना ज प्रतापे थई छे, तेम चैतन्यगगनमां प्रवास पण अहो! संतोना प्रतापे थयो
छे.