: ३० : आत्मधर्म : फागण : २५०१
सिद्धवरकूट धाममां
उल्लसेली सिद्धभक्ति
सं. २०१३ मां सिद्धवरकूट सिद्धिधामनी अति
उल्लासभरी यात्रा बाद त्यां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं हतुं.
ए सिद्धिधामना उपशांत वातावरणमां सिद्धभगवंतो प्रत्ये
हृदयनी भक्ति–ऊर्मिओ गुरुदेवे व्यक्त करी हती. फरीने ए
सिद्धवरकूट–सिद्धधामनी यात्रा थई रही छे–ते प्रसंगे ए
सिद्धिधामनुं प्रवचन वांचतां जिज्ञासुओने आनंद थशे.
जुओ, आ सिद्धवरकूट तीर्थ छे. ‘सिद्ध–वर–कूट!’ अहा! सिद्धभगवंतो जगतना
उत्कृष्ट शिखर समान छे. एवा उत्कृष्ट शिखर समान सिद्धपदने करोडो जीवो अहींथी
पाम्या तेथी आ क्षेत्र ‘सिद्धवरकूट’ छे. अहींनो देखाव पण एवो छे के जाणे चारेकोर
मुनिओ ध्यानमां बेठा होय! बे चक्रवर्ती, दस कामदेव अने साडात्रण करोड मुनिवरो
अहींथी मोक्ष पधार्या छे, तेओ अहींथी उपर लोकाग्रे सिद्धालयमां बिराजे छे. (–आम
कहीने गुरुदेवे उपर नजर करीने, हाथ वडे सिद्धालय बताव्युं; पछी उपरना
सिद्धभगवंतोने जाणे के पोताना तेमज श्रोताओना हृदयमां उतारता होय तेम कह्युं:–)
अहो, सिद्धभगवंतो! आपने नमस्कार हो. ‘वंदित्तु सव्वसिद्धे’ एम कहीने
समयसारना मांगळिकमां ज आचार्यदेव सर्व सिद्धभगवंतोने पोताना तेम ज श्रोताओना
आंगणे बोलावीने तेमने नमस्कार करे छे. अहा, सिद्धभगवंतो अक्रिय–चैतन्यबिंब छे,
तेमने शांतपरिणति थई गई छे, आपणा मस्तक उपर समश्रेणीए लोकना उत्कृष्टस्थाने
तेओ बिराजे छे, सिद्धभगवंतो लोकना अग्रेसर छे तेथी लोकना शिरे बिराजे छे. जो तेओ
अगे्रसर न होय तो लोकनी उपर केम बिराजे? जेम पाघडी के मुगटने लोको शिर उपर
धारण करे छे तेम सिद्धभगवाननुं स्थान पण लोकना शिर उपर छे, तेओ जगतमां सौथी
श्रेष्ठ छे. साधकोए अनंत सिद्धभगवंतोने पोताना शिर उपर राख्या छे....ध्येयरूपे हृदयमां
स्थाप्या छे. आ रीते ‘सिद्ध’ भगवंतो ‘वर’ एटले के उत्कृष्ट ‘कूट’ एटले के शिखर छे.
–आम सिद्धभगवानमां ‘सिद्धवरकूट’ नो भावार्थ ऊतार्यो. आवा सिद्धभगवंतोने
ओळखीने ध्येयरूपे पोताना आत्मामां स्थापवा–एटले के पोताना आत्माने ते सिद्धिना पंथे
परिणमाववो ते सिद्धिधामनी परमार्थ जात्रा छे.
जुओने, अहींनो आसपासनो देखाव पण केवो छे! मोक्षना साधक मुनिओ