काळमां आवा वनजंगलमां रहीने अनेक मुनिओ कारण परमात्माने ध्यावता हता...ने
केवळज्ञान पामीने मोक्ष पामता हता. दरेक आत्मा पोते आवो कारणपरमात्मा छे.
ज्यारे अंतर्मुख थईने पोते पोतानुं ध्यान करे त्यारे सम्यग्दर्शन थाय छे. अंतरमां
कारणपरमात्माने ध्यावी–ध्यावीने ज अनंता जीवो सिद्ध थया छे ने थशे.
चूलगिरि जेवो कारण परमात्मा छे, तेना स्वभावमांथी कोतरीने सिद्धपद प्रगटे छे,
सिद्धपद बहारथी नथी आवतुं. सनतकुमार अने मघवा ए बे चक्रवर्तीओ छ–छ खंडना
राजने क्षणमात्रमां छोडीने मुनि थया ने आत्माने ध्यावीने अहींथी सिद्धपद पाम्या; ए
ज रीते दस कामदेव अने करोडो मुनिवरो पण अहींथी सिद्धपद पाम्या; ते बधाय
अंदरमां कारण हतुं तेने ध्यावीने ज कार्यपरमात्मा (सिद्ध) थया छे. अने तेनी प्रतीत
करतां आ जीवने पण स्वभावमां अंतमुर्खता थईने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
सिद्धिनो मार्ग प्रगट थाय छे. आवा मार्गथी अनंता जीवो सिद्धपुरीमां पहोंच्या छे; ने
अत्यारे पण ए मार्ग चाली ज रह्यो छे.
श्रोताओ एकतान थईने आनंदपूर्वक झीली रह्या छे: अहा! जाणे सिद्धभक्तिनो
शांतरस वही रह्यो छे...)
सिद्धपदनो आदर कर्यो तेणे संयोगनी अने विकारनी बुद्धि छोडीने उत्कृष्ट
चैतन्यस्वभावमां आरोहण कर्युं. ए ज सिद्ध–वर–कूटनी यात्रा छे.
जवाबदारी सहित कहे छे के हे सिद्धभगवंतो! मारा आंगणे पधारो....