भारतमां ठेरठेर प्रवर्ती रह्युं छे, ने समस्त जनता एकमेक थईने
अत्यंत उत्साहथी तेनुं स्वागत करी रही छे.
सहित आ भरतक्षेत्रमां विचरता हता...तेनी थोडीक झांखी अत्यारे थई
रही छे. आपणे पण प्रभुना शासनमां छीए, ने प्रभुए चलावेलुं
धर्मचक्र आजे पण चाली रह्युं छे.
सौमां वीतरागभावनी ज वृद्धि थाय; उत्सवने लगता वर्षभरना
कार्यक्रमोमां के प्रचारमां एवुं कांई न थाय के जेथी क््यांय कलेश थाय;
–अपि तु जुनी कोई कटुता होय तो ते पण दूर थईने, परस्पर प्रेम–
वात्सल्य वधे एम करीने आपणे सौए उत्सवने शोभाववानो छे.
उत्सव उजवीने तेमना मार्गे जवानुं छे. आपणे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्रवडे भगवानना मार्गमां जेटला चालीशुं तेटली ज उत्सवनी
सफळता थशे. उत्सवमां लाखो माणसो के करोडो रूपिया भेगा थाय
एना करतां बे–पांच व्यक्ति पण सम्यक् भावोने प्राप्त करे ते वधु
महत्त्वनुं छे. ‘सम्यक् आत्मभावोनी प्राप्ति–ए ज महावीरनो साचो
महोत्सव छे’–आ महत्त्वना मंत्रने सामे राखीने आपणे भगवाननो
उत्सव उजवीए.