: फागण : २५०१ आत्मधर्म : ३ :
सिवायनो ज्ञानरस केवो छे, ते ज्ञानी पासेथी तथा शास्त्रथी समजीने पोताना वेदनथी
तेनो निर्णय करे छे.
ज्ञानीनी अनुभूति–अनुसार भेदज्ञानना अभ्यास वडे वारंवार पोताना
निर्णयने घूंटे छे, तेनो रस वधतो जाय छे, अने बहारनी बीजी वातमांथी रस ओछो
थतो जाय छे.–आ रीते मोहनुं जोर तूटतुं जाय छे ने ज्ञाननुं जोर वधतुं जाय छे. आ
प्रकारे परिणामने बीजा कार्योमांथी निवृत्त करीकरीने अंतरमां भेदज्ञाननी स्फुरणा करतो
जाय छे. जेमके, हुं एक शुद्धज्ञायक छुं; मारा ज्ञायकतत्त्वनी परिणति पण ज्ञानरूप छे;
तेमां द्रव्यकर्म–भावकर्म के नोकर्म नथी. हुं असंख्यप्रदेशे भरेला मारा अनंतगुणथी
स्वतंत्र छुं; हुं मारा द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी पूरो छुं अने परवस्तुना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–
भावनी साथे मारे कांई संबंध नथी,–हुं तथा परद्रव्य बधाय स्वतंत्र छीए तेथी
परद्रव्यनुं कांई करी शकुं नहीं, तेमज परद्रव्य मने कांई लाभ के नुकशान करी शके नहीं.
–आवी समजणने लीधे तेने परप्रत्ये निरपेक्षवृत्ति होय छे, एटले परमां राग–द्वेष के
क्रोध–मानादि कषायोनो रस घणो ज घटी गयेल होय छे, तेने बहारना कार्योमां हठाग्रह
रहेतो नथी पण समाधान करतो होय छे, तेथी तेने आकुळता ओछी थाय छे; पोताना
जोरने ते चैतन्य तरफ ज केन्द्रित करवा मथे छे.
आ प्रमाणे आत्मानुं स्वरूप ज्ञानी पासेथी जाणीने वारंवार अभ्यास करीने
आत्मानो महिमा द्रढ करतो जाय छे अने पछी तेना ज ध्यानमां एकाग्रचित्ते आत्मानो
वारंवार अभ्यास करतां–करतां आत्मामां लीन थवानी तलप लागे छे. अन्य
निष्प्रयोजन विचारोथी दूर खसीने एक आत्मा संबंधी ज चिंतनमां ते ऊंडो ऊतरे छे.
हजी गुण–गुणीना भेदना विकल्प छे, पण ते विकल्पथी जुदुं ज्ञान लक्षमां लीधुं छे एटले
विकल्पमां अटकवा मांगतो नथी, पण विकल्पथी पार एवा ज्ञाननो स्वाद लेवा मांगे
छे.–आ रीते ते जीव ज्ञानस्वभावने आंगणे आव्यो छे. हजी निर्विकल्प स्वसंवेदन
थयेल नथी, पण स्वभावमां जवा माटे पुरुषार्थ तैयार थवा मांडयो छे. राग करतां
ज्ञान तरफनुं जोर वधतुं जाय छे. आवो वारंवार पुरुषार्थ करतां आत्ममहिमानो
चैतन्यरस ज्यारे पराकाष्टाए पहोंचे छे त्यारे तेनो उपयोग सूक्ष्म विकल्पथी पण
एकाएक जुदो पडीने, ईन्द्रियातीत अंर्त–स्वभावमां अभेद थाय छे एटले के निर्विकल्प
थई जाय छे. आवी निर्विकल्प अनुभवदशापूर्वक भगवान आत्मानुं सम्यग्दर्शन थाय
त्यारे तेनी साथे कोई अपूर्व आनंद ने अपार शांति वेदाय छे. बस, त्यारथी ते जीव
मोक्षमार्गमां दाखल थई जाय छे.
अहा, ए दशा धन्य छे........कृत्यकृत्य छे;
ए दशावाळा आराधक जीवो वंदनीय छे.