: १० : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
अहो सर्वज्ञ महावीर! आप मोक्षमार्गना नेता छो....विश्वना ज्ञाता छो.
तेमनाथी जुदो ज्ञान ने आनंदस्वरूप छे; आवा आत्माने जाण्ये–मान्ये
अनुभव्ये ज दुःख टळीने शांति–समाधि थाय छे.
मुनिवरो अने आचार्यभगवंतो मुमुक्षु जीवोना धर्मपिता छे;
बहिरात्म जीवोने अज्ञानथी भावमरणमां मरता देखीने तेओने करुणा
आवे छे के अरेरे! चैतन्यने चूकीने मोहथी जगत् मूर्छाई गयुं छे! तेने
पोताना आत्मानी सुध–बुध रही नथी. अरे! चैतन्यभगवानने आ शुं
थयुं के जड–कलेवरमां मूर्छाई गयो? अरे जीवो! अंतरमां प्रवेश करीने
जुओ...तमे तो चिदानंदस्वरूप अमर छो.
जेम राजा पोताने भूलीने एम माने के हुं भीखारी छुं, तेम आ
चैतन्य राजा पोताना स्वरूपने भूलीने, देह ते ज हुं छुं–एम मानीने
विषयोनो भीखारी थई रह्यो छे; तेनुं नाम भावमरण छे. तेना उपर
करुणा करीने कहे छे के अरे जीवो?
“क्षणक्षण भयंकर भावमरणे कां अहो! राची रहो.”
ए देहादिमां आत्मबुद्धि छोडो, ने भिन्न चैतन्यस्वरूपने
ओळखीने तेनी श्रद्धा करो...के जेथी आ घोर दुःखोथी छूटकारो थाय ने
आत्मानुं निराकुळ सुख प्रगटे.
आत्मानुं स्वरूप ओळखीने पछी तेने साधतां आत्मा पोते
स्वयमेव परमात्मा बनी जाय छे. साध्य अने साधन बंने पोतामां छे,
पोताथी बहार कोई साध्य के साधन नथी, माटे तमारी चैतन्यसंपदाने
संभाळो....ने बाह्यबुद्धि छोडो–एवो संतोनो उपदेश छे.
[हवे आजे (जेठ सुद पांचमे) श्रुतपंचमीनो महान दिवस
होवाथी तेना महिमा संबंधी थोडुंक कहेवाय छे.]
श्रुतपंचमीनो ईतिहास आ प्रमाणे छे:–
वीतराग सर्वज्ञ अंतिम तीर्थंकर देवाधिदेव महावीर परमात्माना
श्रीमुखथी दिव्यध्वनिद्वारा जे हितोपदेश नीकळ्यो ते झीलीने
गौतमगणधरदेवे एक मुहूर्तमां बार अंगनी रचना करी, बार अंगमां तो
अपार श्रुतज्ञाननो दरियो भर्यो छे. महावीर भगवानना मोक्ष पधार्या
बाद गौतमस्वामी, सुधर्मस्वामी अने जंबुस्वामी ए त्रण केवळी, तथा
आचार्य विष्णु, नंदि, अपराजित, गोवर्द्धन अने