Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ११ :
* हे प्रभो! आपनुं अनेकान्तशासन सर्वेजीवोने माटे भद्रकारी छे. *
भद्रबाहु ए पांच श्रुतकेवली भगवंतो १६२ वर्षमां अनुक्रमे थया.
त्यारपछी बार अंगनुं ज्ञान परंपरा घटतुं–घटतुं चाल्युं आवतुं हतुं. अने
तेनो केटलोक भाग धरसेनाचार्यदेवने गुरुपरंपराथी मळ्‌यो हतो. महावीर
भगवान मोक्ष पधार्या बाद ६८३ वर्षे धरसेनाचार्यदेव थया. तेओ
सौराष्ट्रना गीरनारपर्वतनी चंद्रगूफामां बिराजता हता, तेओ अष्टांग
महानिमित्तना जाणनार अने भारे श्रुतवत्सल हता. भगवाननी
परंपराथी चाल्या आवेला श्रुतना विच्छेदनो भय थतां तेमणे महिमा–
नगरीमां धर्मोत्सव निमित्ते भेगा थयेला दक्षिणना आचार्यो उपर एक
लेख मोकल्यो; ते लेखद्वारा धरसेनाचार्यदेवना आशयने समजीने ते
आचार्योए शास्त्रना अर्थने ग्रहण–धारण करवामां समर्थ, महा विनयवंत,
शीलवंत एवा बे मुनिओने धरसेनाचार्यदेव पासे मोकल्या; गुरुओ द्वारा
मोकलवाथी जेमने घणी तृप्ति थई छे, जेओ उत्तम देश, उत्तम कुळ अने
उत्तम जातिमां उत्पन्न थयेला छे, समस्त कळाओमां पारंगत छे, एवा ते
बंने मुनिवरो त्रणवार आचार्यभगवंतोनी आज्ञा लईने धरसेनाचार्यदेव
पासे आववा नीकळ्‌या.
ज्यारे ते बंने मुनिवरो आवी रह्या हता त्यारे, अहीं
धरसेनाचार्य देवे रातना पाछला भागमां एवुं शुभ स्वप्न जोयुं के बे महा
सुंदर सफेद बळद भक्तिपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा दईने नम्रपणे चरणोमां नमी
रह्या छे. –आ प्रकारनुं मंगल स्वप्न देखवाथी संतुष्ट थईने आचार्यदेवे
‘जयवंत हो श्रुतदेवता’ एवा आशीर्वादनुं उच्चारण कर्युं.
ते ज दिवसे पूर्वोक्त बंने मुनिवरो आवी पहोंच्या, ने भक्तिपूर्वक
आचार्यदेवना चरणोमां वंदनादि कर्या. महाधीर गंभीर अने विनयनी
मूर्ति एवा ते बंने मुनिओए त्रीजे दिवसे धरसेनाचार्यदेव पासे
विनयपूर्वक निवेदन कर्युं के प्रभो! आ कार्यने माटे अमे बंने आपना
चरणकमळमां आव्या छीए. तेओए आवुं निवेदन कर्युं त्यारे ‘बहु सारुं,
कल्याण हो’ एम आचार्यदेवे आशिषवचन कह्या.
त्यारबाद, जो के शुभस्वप्न उपरथी ज ते बंने मुनिओनी
विशेषता जाणी लीधी हती छतां फरीने परीक्षा करवा माटे, धरसेनाचार्यदेवे
ते बंने साधुओने