: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : १३ :
* ए जीवजो, जीवडावजो प्रभु वीरनो उपदेश छे. *
तेनो विशेष प्रचार थतो जाय छे, ने घणे ठेकाणे तो आठ दिवस सुधी
उत्सव करीने श्रुतज्ञाननी प्रभावना थाय छे. आ श्रुतपंचमीनो दिवस घणो
महान छे. अहो, सर्वज्ञ भगवाननी वाणी दिगंबर संतोए टकावी राखी छे.
पुष्पदंत अने भूतबलि आचार्यभगवंतोए जे षट्खंडागम रच्या
तेना उपर वीरसेनाचार्यदेवे धवला नामनी महान टीका रची छे. ते
वीरसेनाचार्य पण एवा समर्थ हता के सर्वार्थगामिनी (–सकलअर्थमां
पारंगत) एवी तेमनी नैसर्गिक प्रज्ञाने देखीने बुद्धिमान लोकोने सर्वज्ञनी
सत्तामां संदेह न रहेतो, अर्थात् तेमनी अगाध ज्ञानशक्तिने जोतां ज
बुद्धिमानोने सर्वज्ञनी प्रतीत थई जती. आवी अगाध शक्तिवाळा
आचार्यदेवे षट्खंडागमनी टीका रची. आ परमागम सिद्धांतशास्त्रो सेंकडो
वर्षोथी ताडपत्र उपर लखेला मूडबिद्रीना शास्त्रभंडारोमां विद्यमान छे.
थोडांक वर्षो पहेलांं तो तेना दर्शन पण दुर्लभ हता...पण पात्र जीवोना
महाभाग्ये आजे ते बहार प्रसिद्ध थई गया छे. (गुरुदेव साथे दक्षिण
देशना तीर्थोनी यात्रा वखते आपणे रत्नप्रतिमा सहित आ ताडपत्र–
लिखित धवल सिद्धांतना पण दर्शन कर्या हता.) अने हवे तो ते
मूळशास्त्रो हिन्दी अनुवाद सहित प्रसिद्धिमां आव्या होवाथी मुमुक्षुजीवो
उल्लासथी तेनो अभ्यास करी शके छे.
आचार्यभगवंतोए सर्वज्ञभगवाननी वाणीनो सीधो नमूनो आ
शास्त्रोमां भर्यो छे. ए उपरांत बीजा अनेक महासमर्थ आभना थोभ
जेवा कुंदकुंदाचार्यदेव वगेरे संतो जैनशासनमां पाकया, ने तेमणे
समयसारादि अलौकिक महाशास्त्रो रच्यां.....तेनो एकेक अक्षर आत्माना
अनुभवमां कलम बोळीबोळीने लखायो छे. ए संतानी वाणीना ऊंडां
रहस्यो गुरुगमे समजतां अपूर्व आत्मतत्त्वनो अपार वैभव देखाय छे.
महावीरभगवाननी परंपराथी केटलुंक ज्ञान मळ्युं तथा पोते सीमंधर
भगवानना उपदेशनुं साक्षात् श्रवण कर्युं, ते बंनेने आत्माना अनुभव
साथे मेळवीने आचार्यभगवाने श्री समयसारमां भरी दीधुं छे. ने ए रीते
आत्माना समस्त वैभवथी एकत्व–विभक्त आत्मस्वरूप देखाडयुं छे.
आ समाधिशतकनां बीजडां पण समयसारमां ज भर्या छे.
पूज्यपादस्वामी पण महासमर्थ संत हता, तेमणे आ समाधिशतकमां
टूंकामां अध्यात्मभावना भरी दीधी छे. ते आप आ लेखमाळामां वांची
रह्या छो.