
नहि; केमके दुःख तेओए पोतानी भूलथी ऊभुं कर्युं छे, अने तेओ पोते पोतानी भूल
टाळे तो तेमनुं दुःख टळे. कोई परना लक्षे अटकवानो ज्ञाननो स्वभाव नथी.
परिणामना प्रवाहनी दिक्षा फरी छे; ते अंतरमां आगळ वधीने अनुभव करे छे एटले
आत्मसाक्षात्कार अर्थात् सम्यग्दर्शन थाय छे. ते माटे ते जीव शुं करे छे? आत्मानी
प्रगट प्रसिद्धिने माटे ईन्द्रिय अने मनद्वारा पर तरफ प्रवर्तती बुद्धिओने पाछी वाळीने
ज्ञानने आत्मामां लई जाय छे, एटले उपयोगने आत्मसन्मुख करे छे, त्यां साक्षात्
निर्विकल्प अनुभूतिमां भगवान आत्मा प्रसिद्ध थाय छे. ज्ञान वडे जे अप्रगटरूप
निर्णय कर्यो हतो तेनुं आ फळ आव्युं एटले के प्रगटरूप स्वानुभव थयो.
ज्ञानस्वभावनो निर्णय करे त्यां आवुं फळ आवे ज.