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वेदे छे, मारुं सुख मारा अंतरमां भर्युं छे एम तेने सुखना अनुभव सहित प्रतीत थई
जाय छे; सम्यग्द्रष्टिजीवना परिणाममां कोई अचिंत्य अपूर्व गंभीरता थई जाय छे. ते
गंभीरतानुं माप उपलकद्रष्टिए थई शकतुं नथी. आवुं सम्यग्दर्शन ते अभेदपणे आत्मा
ज छे.
शुभ कषायभावो आवे खरा, परंतु आत्मशांति तो ज्ञानभावमां ज छे–एवो निश्चय
चालु ज रहे छे. पछी जेम जेम ज्ञानभावना वधती जाय तेम तेम शुभाशुभ
कषायभावो पण टळता जाय छे ने शांतिनुं वेदन वधतुं जाय छे. अंदरमां शांतरसनी ज
मूर्ति आत्मा छे तेना लक्षे जे वेदन थाय ते ज सुख छे अने एवा सुखनुं वेदन
सम्यग्दर्शनमां छे. एक अखंड प्रतिभासमय आत्मानो अनुभव ते ज सम्यग्दर्शन छे.
ते अनुभूति केवी हशे! ए वस्तुनो महिमा लक्षमां लईने तेनो निर्णय करो. एना
निर्णयथी तमने अपार आत्मबळ मळशे ने शीघ्र तमारुं कार्य सिद्ध थशे. बस, बंधुओ–
आनंदमय अनुभूति करो......
अपूर्व शांतिनुं वेदन करो.......
ने मोक्षना मार्गमां आवी जाओ.
निर्वाणमहोत्सवमां प्रभु प्रत्येनी साची अंजलि छे