Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
* अहो धर्मचक्रप्रवर्तक वीरनाथदेव! पधारो....पधारो...पधारो... *
चैतन्यजीवन शरू थाय छे. अंतरमां आत्मा पोताना स्वरूपनी कोई परम तृप्तिनुं सुख
वेदे छे, मारुं सुख मारा अंतरमां भर्युं छे एम तेने सुखना अनुभव सहित प्रतीत थई
जाय छे; सम्यग्द्रष्टिजीवना परिणाममां कोई अचिंत्य अपूर्व गंभीरता थई जाय छे. ते
गंभीरतानुं माप उपलकद्रष्टिए थई शकतुं नथी. आवुं सम्यग्दर्शन ते अभेदपणे आत्मा
ज छे.
सम्यग्दर्शन अने आत्मा बंने अभेद छे, आत्मा पोते सम्यग्दर्शन स्वरूप छे.
आवा सम्यग्दर्शन वडे ज्ञानस्वभावी आत्माने अनुभवमां लीधा पछी पण अशुभ के
शुभ कषायभावो आवे खरा, परंतु आत्मशांति तो ज्ञानभावमां ज छे–एवो निश्चय
चालु ज रहे छे. पछी जेम जेम ज्ञानभावना वधती जाय तेम तेम शुभाशुभ
कषायभावो पण टळता जाय छे ने शांतिनुं वेदन वधतुं जाय छे. अंदरमां शांतरसनी ज
मूर्ति आत्मा छे तेना लक्षे जे वेदन थाय ते ज सुख छे अने एवा सुखनुं वेदन
सम्यग्दर्शनमां छे. एक अखंड प्रतिभासमय आत्मानो अनुभव ते ज सम्यग्दर्शन छे.
* महावीर–सन्देश....महावीर–अंजलि *
अहो, आत्मअनुभूतिरूप अपूर्वदशानी शांतिनी शी वात! वहाला साधर्मी भाई
–बहेनो! विचारो तो खरा, के जैनशासनना सर्वे संतोए जेनी खूबखूब प्रशंसा करी छे
ते अनुभूति केवी हशे! ए वस्तुनो महिमा लक्षमां लईने तेनो निर्णय करो. एना
निर्णयथी तमने अपार आत्मबळ मळशे ने शीघ्र तमारुं कार्य सिद्ध थशे. बस, बंधुओ–
शीघ्र आत्मनिर्णय करो.....
आनंदमय अनुभूति करो......
अपूर्व शांतिनुं वेदन करो.......
ने मोक्षना मार्गमां आवी जाओ.
–आ भगवान महावीरनो सन्देश छे, ने आ ज
निर्वाणमहोत्सवमां प्रभु प्रत्येनी साची अंजलि छे
* जय महावीर *