Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : २१ :
* भगवान महावीर जन्मकल्याणक–विशेषांक *
(नवीन स्वाध्याय)
(४)
अध्यात्मभावनानुं घोलन थाय ने स्वाध्यायमां विशेष
रस जागे, ते माटे आ वर्षथी कोई ने कोई नवीन शास्त्रनो अनुवाद
रजु करवानुं आपणे शरू करेल छे. ते अनुसार ‘पाहुड दोहा’ ना
अनुवादनो आ चोथो लेख छे. जिज्ञासुओने आ लेखमाळा गमी छे.

१०१. आ पृथ्वी पर जेनुं चित्त सर्वे रागमां, छए रसोमां के पांच रूपमां रंजित नथी,
एवा योगीने ज हे जीव! तारो मित्र कर.
१०२. जेनुं तप जराक पण शरीरना संगमां स्थित छे (अर्थात् तप करवा छतां जेने
शरीरनी जराक पण ममता छे) ते मनुष्यने मरणनो दुस्सह दावानळ सहन
करवो पडे छे.
१०३. देह गळवा टाणे मति–श्रुतनी धारणा–ध्येय वगेरे बधुं गळवा मांडे छे; हे वत्स!
त्यारे एवा अवसरमां देवने तो कोईक विरला ज याद करे छे.
१०४. जेनुं पवित्र मन संसारना सुंदर पदार्थोथी भागीने, मनथी पार एवा चैतन्य–
स्वरूपमां थंभी गयुं–पछी ते गमे त्यां संचरे तोपण तेने नथी भय के नथी संसार.
१०५. जीवोनो वध करवाथी नरक गतिमां जवाय छे, अने अभयप्रदानथी स्वर्गमां
जवाय छे. –आ बे पंथ अमे तने देखाड्या, तेमांथी तने जे गमे तेमां तुं लाग.
१०६. आ संसारमां सुख तो बे दिवसनुं छे, पछी तो दुःखोनी परिपाटी छे; तेथी हे
हृदय! हुं तने शिखामण आपुं छुं के तारा चित्तने तुं वाड कर, अर्थात् मर्यादामां
राख, ने साचा मार्गमां जोड.
१०७. हे मूढ! तुं देहमां रंजायमान न था; देह ते आत्मा नथी. देहथी भिन्न ज्ञानमय
आत्मा छे–तेने तुं देख. हे योगी! देहथी भिन्न ज्ञानमय एवो आत्मा तुं छो.