Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : २५ :
हे वीरनाथ भगवान! अंतरना आनंदमयमार्गे आप शिवपुरीमां पहोंच्या.
गंजने ऊडाडी देवा माटे ते महा वायरो छे, अने भवना वनने बाळी
नाखवा माटे ते अग्निसमान छे; मुमुक्षुनो ते एक मनोरथ छे.
अहा, सर्वज्ञ तीर्थंकरोए जेनो महिमा दिव्यध्वनि वडे प्रसिद्ध कर्यो
छे, ते भगवान आत्मा शुद्धचिद्रूप, सर्व तीर्थोमां उत्कृष्ट तीर्थ, सुखनो
उत्तम खजानो अने सौथी सुंदर तत्त्व छे.
–आवा अचिंत्य अद्भुत आत्मतत्त्वनुं ज्ञान थतां ज परिणाम
झडपथी ते तरफ वळी जाय छे, –क्षणभेद पण रहेतो नथी. ज्यां ज्ञान
अंतरमां वळ्‌युं त्यां श्रद्धा वगेरे अनंतगुणो पण पोते पोताना निर्मळ
भावरूपे खीली ऊठया! वाह, आत्मबाग खीली ऊठ्यो.....अने
अनंतगुणोना शांतरसनो एकीसाथे कोई अतीन्द्रिय निर्विकल्प अत्यंत
मधुर स्वाद अनुभूतिमां आव्यो...तेनुं नाम सम्यग्दर्शन!
आ रीते पूर्ण स्वरूपना लक्षे सम्यग्दर्शन थयुं त्यां मोक्षमार्गनी
शरूआत थई. “पूर्णताने लक्षे थयेली शरूआत ते ज वास्तविक शरूआत
छे.” मोक्षमहेलनुं प्रथम पगथियुं आ सम्यग्दर्शन छे.
अहा, परमात्मपद साथे जेनी संधि छे एवी ज्ञानदशा ने एवुं
सम्यग्दर्शन ते प्रगट थतां पहेलांं मुमुक्षुने आत्मा तरफनी अद्भुत धारा
ऊपडे छे. अने आत्मा तरफनी विचारधाराना बळे तेनी रहेणी–करणी पण
तेने अनुकूळ ज होय छे, –तेनी बधी रहेणी–करणीमां आत्मधूननी धारा
सतत वहेती होय छे. ते धारानो प्रवाह आत्मा तरफ ढळतो होय छे.
परिस्थिति–अनुसार शुभ–अशुभ परिणामो होय तेनी वच्चे पण
आत्मानी धून तूटती नथी. तेने आत्मानी खरेखरी जरूर लागी छे, एटले
वच्चे बीजा कोई भावोनो रस मुख्य थवा देतो नथी. बीजा बधा रसने
गौण करीने आत्मरसने मुख्य करतो जाय छे.
अनुभवदशा पहेलांं जीवने घणा प्रकारथी आत्मस्वरूपनुं जोर
अने तेना महिमा संबंधी विचारो आवता होय छे. तेमां विकल्पनी
मुख्यता नथी होती; विकल्पथी ते आघो खसतो जाय छे ने आत्मामां ऊंडो
ऊतरतो जाय छे. जेम जेम ज्ञान ऊंडुं ऊतरतुं जाय छे तेम तेम
चैतन्यभावनो वधु ने वधु महिमा