Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
* अहो सर्वज्ञ महावीर! आप मोक्षमार्गना नेता छो....विश्वना ज्ञाता छो. *
देखातो जाय छे ने ते प्रकारनी शांति वेदाती जाय छे. शांति देखाती होवाथी
तेमां तेने वधु ने वधु गमतुं जाय छे ने आ गमवानी पराकाष्टा ते ज
निर्विकल्प अनुभूतिरूप परिणमे छे. तेथी ज्ञानीओ आत्मस्पर्शी भावथी
कहे छे के–
‘हे जीव! तुं आत्मामां गमाड! ’
हुं बधाने देखनारो छतां बधाथी जुदो, विकल्पने जाणनार छतां
पोते निर्विकल्प–एवा भाव घूंटाय छे.–
जे द्रष्टा छे द्रष्टिनो, जे जाणे छे रूप,
अबाध्य अनुभव जे रहे ते छे जीवस्वरूप.
आंखवडे वस्तु जाणी, पछी आंख न होय–तोपण ते ज्ञान तो टकी
रहे छे, केमके जाणनारो आंखथी जुदो छे. विकल्पो बाद करतां–करतां पण
आत्माने बाधा नथी आवती. विकल्पो छूटी जवा छतां आत्मा अबाधपणे
टकी रहे छे; आ रीते विकल्पथी पार चैतन्यस्वरूप जीव हुं छुं–एम ते
पोताना निजरूपने लक्षमां ल्ये छे.
आ रीते पोतानुं शुद्धस्वरूप जेवुं छे तेवुं द्रष्टिमां लीधुं छे; ते
पोताना शुद्धस्वरूपने जाणतां पोतामां ज एकत्वरूप परिणमन
(अनुभूति) करे छे, तेने पर साथे जराय संबंध नथी; ते परने जाणतो
होवा छतां तेमां एकत्वपणे नथी परिणमतो; पोताना आत्माने जाणतां
तेमां एकत्वपणे परिणमे छे. आ रीते परथी विभक्त अने स्वमां एकत्व
एवुं तेनुं ‘ज्ञायक–जीवन’ छे.
ज्ञानी थवा माटे पहेलांं मुमुक्षु जीवने आत्माना आदर्शरूप
सिद्धभगवान तथा अरिहंतभगवान लक्षमां आवे छे; तेमना जेवो हुं छुं–
एम ते आत्मानेशुद्धपणे भावे छे ने तेमना जेवी दशा प्राप्त करवानी
भावना तेने आव्या करती होय छे. पूर्णताने लक्षे ते शरूआत करे छे.
संपूर्णपणे पोतानी शुद्ध मोक्षदशानी भावना, द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावे सर्व
रीते पोताने शुद्धरूप बनवानी भावना ज्ञानी जीवने होय छे. द्रव्य–गुण
जेवा शुद्ध छे तेवी शुद्धतानो अंश पर्यायमां तेणे चाख्यो छे, ने ते क्यारे
पूर्ण प्रगटे एवी भावना होय छे. भले पर्यायना भेदविकल्पोने हेय
कहीए, पण पर्यायमां शुद्धता थवी, आनंद थवो ते तो उपादेय