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स्पष्ट आवे छे, पण वाणीगम्य थतो नथी.–
शक््युं ते तेना वेदनमां आवी गयुं छे. वाह रे वाह! धन्य ए दशा! धन्य
ए जीव!!! चैतन्यना अगाध चमत्कारनो तेणे साक्षात्कार करी लीधो छे....
एणे पोताना अंतरमां परमात्मानुं दर्शन करी लीधुं छे.
स्वानुभवप्रमाण एवुं बळवान छे के बीजा कोई प्रमाणने शोधवा जवुं
पडतुं नथी. साधारण जीवो जगतना कोई देखे के न देखे,–पोते तो पोतानी
अनुभूतिने साक्षात् जाणे छे; माटे–
आराधकभावमां वच्चे कदाचित् सर्वोत्कृष्ट पुण्यना संयोगो आवे तोपण
तेमां तेने कांई सुंदरता लागती नथी के तेने लीधे आत्मानी किंचित् महत्ता
लागती नथी. तेने पोताना स्वतत्त्वनुं जोर ज एवा प्रकारनुं होय छे के
बीजे बधेथी तेने निरंतर उदासीनता ज वर्ते छे. अहा, चैतन्यस्वरूपने
चेतनारी मारी ज्ञानचेतना रागने करवा केम जाय! अने जुदी परवस्तुने
करवानी तो वात ज शी? पर पदार्थ मारी नजीक हो या दूर हो, पण मारुं
आ स्वतत्त्व तो तेनाथी हंमेशा निराळुं ज छे; ते पोते