Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
* चेतनभाव ज साचुं जीवन छे...देहनो संयोग ए जीवन नथी. *
पोताथी ज शोभी रह्युं छे. मारा स्वतत्त्वनी अद्भुत सुंदरता अन्य कोई
पदार्थनी अपेक्षा नथी राखती. –आम स्वतत्त्वनी सुंदरतानो देखतो
सम्यग्द्रष्टि पोते पोतामां तृप्त वर्ते छे.
* कोई अज्ञानी जीवने जरूर प्रश्न ऊठशे के, –तो शुं ते ज्ञानी जीवो
राजकारभार नथी चलावता? गृहसंसार के वेपार–धंधामां नथी जोडाता?
शुं भरतचक्रवर्ती वगेरे ते बधुं नहोता करता?
* अरेरे, बापु! ‘ज्ञानीनी ज्ञानदशाने’ तें न ओळखी, तने जे कार्यो
देखाया ते बधा रागपरिणतिनां कार्यो छे, ज्ञानपरिणतिनां नहीं.
ज्ञानपरिणति अने रागपरिणति–बंनेनां काम साव नोखां छे,
ज्ञानपरिणतिमां तन्मय ज्ञानी स्वद्रव्यनी चेतना सिवाय बीजा शेमांय
तन्मयपणे वर्तता नथी तेथी तेना ते अकर्ता ज छे. बाकी अस्थिरता
अपेक्षाए तेनेय जे राग–द्वेषना परिणामो छे तेटलो दोष छे; –पण
ज्ञानचेतना तेनाथी जुदी छे, –ए चेतनाने तुं ओळख तो ज तने ज्ञानीनी
अंतरंगदशा ओळखाय, ने तारामांय एवी दशा प्रगटे.
ए ज रीते, ज्ञानी मंदिरमां होय, जिनदेवनी पूजा करे, ते वखतेय
ज्ञानचेतना ते शुभरागथी जुदुं ज वीतरागी काम करती थकी मोक्षने साधी
रही छे, एटले राग वखतेय तेने मोक्षमार्ग चालु छे; राग पोते भले
मोक्षमार्ग नथी, पण ते वखतनी ज्ञानचेतना अने सम्यक्त्वादि भावो
जीवंत छे–ते मोक्षमार्ग छे.–वाह, धन्य मोक्षनो पथिक! धन्य तेना
अतीन्द्रियभावो!
अहो, ज्ञानीनी आवी दशानो विचार करतां मुमुक्षुनी विचारधारा रागथी
जुदी पडीने चैतन्य तरफ झूकवा मांडे छे...पछी शुं थाय छे? के तेनेय राग
अने ज्ञाननी भिन्नतानुं वेदन थईने, ज्ञाननी अनुभूति थाय छे; ने पछी
ते ज अनुभूति करतां करतां संसारथी छूटीने ते मुक्त थाय छे. तत्त्वज्ञ
श्रीमद्राजचंद्रजी आ वातनी साक्षी आपे छे के–
ज्यां प्रगटे सुविचारणा, त्यां प्रगटे निज ज्ञान;
ते ज्ञाने क्षय मोह थई, पामे पद निर्वाण.