: ३८ : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
• अशुभोदयथी आत्मा कुमनुष्य, तिर्यंच अथवा नारकी थईने सदा हजारो
दुःखोथी पीडित थयो थको संसारमां अत्यंत भमे छे.
• शुद्धोपयोगथी प्रसिद्ध एवा अरिहंतो तथा सिद्धोने अतिशय, आत्माथी ज
समुत्पन्न, विषयातीत, अनुपम, अनंत अने विच्छेद रहित सुख होय छे.
• रागादि संगथी मुक्त एवा मुनि, अनेक भवोमां संचित करेला कर्मरूपी इंधन
समूहने शुक्लध्यान नामना ध्यान वडे शीघ्र भस्म करे छे.
• हृदयमां ज्यां सुधी आत्मस्वभावलब्धि प्रकाशमान नथी थती त्यां सुधी ज जीव
शुभ–अशुभजनक एवा संकल्प–विकल्परूप कर्मने करे छे.
• बंधोना स्वभावने तेम ज आत्माना स्वभावने जाणीने, जे बंधोमां अनुरक्त
नथी थतो ते जीव कर्मोथी छूटकारो करे छे.
• ज्यां सुधी आत्मा अने आस्रव ए बंनेना विशेष–अंतरने नथी जाणतो
त्यांसुधी ते अज्ञानी जीव विषयादिमां प्रवृत्त रहे छे.
• ज्ञानी जीव अनेक प्रकारना पुद्गलद्रव्यने जाणतो होवा छतां, परद्रव्यपर्यायपणे
ते परिणमतो नथी, तेने ग्रहण करतो नथी, अने ते–रूपे ऊपजतो नथी.
• जे विमूढमति परद्रव्यने शुभ अथवा अशुभ माने छे ते मूढ अज्ञानी जीव दुष्ट–
अष्टकर्मोथी बंधाय छे.
तेथी न करवो राग जरीये क््यांय पण मोक्षेच्छुए;
वीतराग थईने ए रीते ते भव्य भवसागर तरे.
[आ प्रमाणे भावना समाप्त थई.]
• श्री सोनगढ जैन विद्यार्थीगृह तरफथी सूचना
आपवामां आवे छे
के धोरण पांचथी (अगियार (एस. एस. सी.) सुधीना जे
जैनविद्यार्थीने आ बोर्डिंगमां दाखल थवुं होय तेमणे पचास पैसानी
टिकिट मोकलीने प्रवेशपत्रो मंगावी लेवा, अने ता. ३०–५–७५ सुधीमां
भरीने सोनगढ मोकली देवा. बोर्डिंगमां मासिक भोजन–लवाजम रूा.
६०) साईठ छे; मध्यस्थितिना विद्यार्थी माटे ओछी फी रूा. ३५)
पांत्रीस छे. विद्यार्थीओने धार्मिक शिक्षण पण अपाय छे.
–मंत्री, जैन विद्यार्थीगृह, सोनगढ (सौराष्ट्र )