Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २५०१ आत्मधर्म : ३९ :
बीजा हाथीनी वार्ता (जे हाथीमांथी भगवान बन्यो)

एक हाथीनी वार्ता अंक ३७४ मां वांची....तमने बहु गमी...हवे
आ बीजा हाथीनी वार्ता छे, ते तो एनाथीये वधु गमशे......केमके पेला
त्रिलोकमंडन हाथीनो जीव तो स्वर्गमां गयो छे, ज्यारे आ बीजा
हाथीनो जीव तो तीर्थंकर थईने मोक्ष पाम्यो छे. वाह भई वाह!
हाथीनो जीव केवी रीते मोक्ष पाम्यो! –ते जाणवानी मजा आवशे...ने
अमे पण ते हाथीभाईनी जेम मोक्षनो मार्ग प्रगट करशुं. माटे झट ते
वार्ता कहो!

सांभळो! एक हतो बीजो हाथी. एनुं नाम वज्रघोष. ते हाथीनो जीव पूर्व
भवमां पोदनपुरना राजानो मंत्री हतो. तेनुं नाम मरूभूति. अने तेना मोटाभाईनुं
नाम कमठ. ते कमठ बहु क्रोधी हतो. एक वखत क्रोधवश पापी कमठे तेना नानाभाईने
एक मोटा पत्थरवडे मारी नांख्यो, –ते नानो भाई मरूभूति, दुःखथी मरीने हाथी थयो;
ने तेनो मोटोभाई क्रोधी कमठ मरीने कुक्कट नामनो झरेी सर्प थयो. ते हाथी सम्मेद–
शिखरनी नजीकना एक सरस मजाना वनमां रहे छे. अहा, थोडाक भव पछी जे
सम्मेदशिखरथी पोते मोक्ष पामवानो छे तेनी नजीकना वनमां अत्यारे ते हाथी पशु
तरीके भटकी रह्यो छे. हजी ते आत्मज्ञान नथी पाम्यो, पण हवे तेनी तैयारी छे. हाथी
घणो मोटो छे, ने वनमां सरोवर किनारे रहीने जंगलनुं राज भोगवे छे. अरेरे, मोक्षनो
राजा अत्यारे पोताने भूलीने जंगलनो राजा थईने बेठो छे. हवे आ बाजुं पोदनपुरमां
पोताना मंत्रीने तेना मोटाभाईए मारी नांख्यो–ए जाणीने राजा अरविंदने वैराग्य
थयो; एकवार आकाशना वादळामां सुंदर जिनमंदिरनी रचना थई, राजा ते अद्भुत
मंदिर देखीने घणो राजी थयो ने तेवुं मंदिर बनाववानो विचार करे छे त्यां तो ते
वादळां तरत वीखराई गया, ने मंदिर अलोप थई गयुं. संसारनी आवी क्षणभंगुरता
देखीने राजाए राजपाट छोडीने दीक्षा लीधी, ने मुनि थईने वन जंगलमां विचरवा
लाग्या.
एकवार ते अरविंद–मुनिराज मोटा संघ सहित सम्मेदशिखरजी तीर्थनी यात्रा
करवा माटे जता हता, ने वनमां संघनो पडाव कर्यो हतो; –एवामां एक अद्भुत घटना
बनी. –शुं बन्युं? ते सांभळो.