: ४० : आत्मधर्म : चैत्र : २५०१
मुनिराज जे वनमां संघसहित बिराज्या छे, हाथी पण ते वनमां रहे छे. आ
निर्जन वनमां आटला बधा माणसो ने आटलो बधो कोलाहल हाथीए पहेली ज वार
देख्यो....तेने भय लाग्यो के आ बधा मने पकडवा आव्या हशे! एटले ते हाथी
गभरायो, ते एकदम खीजायो, ने उश्केराटथी चारेकोर दोडवा लाग्यो. संघमां एकदम
धमाचकडी मची गई. बधा लोको भयभीत थईने आमतेम भागवा लाग्या. हाथी तो
मोटीमोटी गर्जना करतो, तेमनी पाछळ दोडवा लाग्यो; ने जे हाथमां आव्युं तेने सूंढमां
पकडी पकडीने दूर फेंकवा लाग्यो!
अरेरे! भविष्यनो भगवान अत्यारे गांडो थयो छे! अत्यारे तिर्यंचपणे भटकी
रहेलो जीव थोडावखत पछी तीर्थंकर थवानो छे! जुओ तो खरा, जीवना परिणामनी
विचित्रता!
गांडा हाथीथी भयभीत थयेला लोको मुनिना शरणमां गया. अरविंदमुनिराज
ध्यानमां बिराजता हता. हाथी किकियारी करतो–करतो ते मुनिराज तरफ दोडयो लोकोने
बीक लागी के, अरे, आ हाथी मुनिराजने शुं करी नांखशे?
मुनिराज तो शांत थईने बेठा छे. एमने जोतां ज सूंढ ऊंची करीने हाथी तेमना
तरफ दोडयो. मुनिने बचाववा लोको दोडया...पण–
पण शुं थयुं? ते धीरजथी सांभळो. ते अरविंद मुनिराजनी छातीमां एक
उत्तमचिह्न हतुं, ते चिह्न जोतां ज हाथी एकदम विचारमां पडी गयो...तेने थयुं के अरे!
आमने तो में क््यांक जोया छे! आ मारा ओळखीता ने हितस्वी होय एम मने लागे
छे. –आवा विचारमां हाथी तो एकदम शांत थईने ऊभो रह्यो; एनुं गांडपण मटी गयुं
ने मुनिराज सामे सूंढ नमावीने बेसी गयो.
लोको तो आश्चर्य पामी गया के अरे! मुनिराज पासे आवतां ज आ गांडो
हाथी एकाएक शांत केम थई गयो! आ बनाव देखीने चारेकोरथी माणसो त्यां
मुनिराज पासे दोडी आव्या.
मुनिराजे अवधिज्ञान वडे हाथीना पूर्वभवने जाणी लीधो; अने शांत थयेला
हाथीने सबोंधीने कह्युं: अरे बुद्धिमान! अरे मरुभूति! आ पागलपणुं तने नथी
शोभतुं. आ पशुता, अने आ हिंसा तुं छोड! हुं अरविंदराजा छुं ने मुनि थयो छुं; तुं
तारा पूर्वभवमां मारो मंत्री हतो; ने तारा भाईए तने मारी नांख्यो. तुं आत्मानुं
भान भूलीने आर्तध्यानथी आ पशुपर्याय पाम्यो. हवे तो तुं चेत...अने आत्माने